पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२२८. सन्देश : कच्छवासियोंको[१]

[५ नवम्बर, १९२५]

अपनी कच्छ यात्राके असाधारण अनुभवोंको संक्षेपमें कह सकना मेरे लिये कठिन है। जहाँतक खुद मेरा सवाल है, मुझे तो राज्य और जनता दोनोंसे स्वागत सत्कार और स्नेह प्राप्त हुआ है। जिस चीजको लेकर मैं सबसे अधिक परेशान रहा, वह था अस्पृश्योंका सवाल। रूढ़िवादी लोगोंने उनकी अन्तरात्माको सन्तुष्ट करनेके लिए तरह-तरहके उपाय किये, लेकिन स्वयं अस्पृश्योंके बीच मैने वहाँ भारी जागृति देखी। वे अपने अधिकारोंके प्रति जागरूक है। वे अपनी जिम्मेदारियाँ समझते हैं। बहुतोंने मरे हुए पशुओंका मांस खाना, मदिरा पीना छोड़ दिया है। आम लोगोंके मनमें उनके खिलाफ कोई पूर्वग्रह नहीं है। ये तो तथाकथित उच्च वर्णके मुट्ठीभर लोग ही है, जो प्रकटत: तो अस्पृश्यतामें विश्वास दिखाते हैं किन्तु उनसे कोई अकेले में पूछे तो वे भी यही कहेंगे कि अस्पृश्यता अनुचित है और सच्चे धर्मके विरुद्ध है। लेकिन उनमें भी कुछ ऐसे नेक लोग हैं, जो अपने जाति-बन्धुओंके अत्याचारकी परवाह न कर पैसेसे और व्यक्तिगत श्रमके द्वारा अस्पृश्योंकी सेवा कर रहे हैं। इन गरीबोंको तबतक किसीसे कोई नया करार करनेकी इजाजत नहीं है, जबतक कि वे उन लोगोंका कर्ज न चुका दें, जिनसे इन्होंने पहले कर्ज ले रखा हो। परिणाम यह होता है कि ये सदाके लिए अपने प्रारम्भिक ऋणदाताओंके गुलाम बन जाते हैं और वे इनके साथ मनमानी करते रहते हैं।

मैंने ये बातें महाविभवके सामने रख दी है और मुझे विश्वास है कि वे इन गम्भीर कठिनाइयोंको दूर करेंगे। यहाँ खादी प्रचारकी बहुत अधिक गुंजाइश है। वह खादी-प्रेमियों द्वारा अपना पूरा विकास किये जानेकी प्रतीक्षामें हैं। कच्छ-जैसे खुश्क आबोहवावाले क्षेत्रमें, जहाँ लोगोंको अच्छा आहार मिलता है, और जो बलिष्ठ भी होते है, महामारी और हैजा असम्भव ही होना चाहिए; किन्तु शहरी लोगोंकी गन्दी आदतोंके कारण यहाँ भी ये बीमारियाँ फैलती है। वृक्ष-रक्षणके लिए भी तत्काल एक संस्था खोलनेकी आवश्यकता है। आज पानीके अभावमें कच्छके बिलकुल वीरान हो जानेका खतरा है, किन्तु पेड़-पौधे लगानेकी ओर उचित ध्यान देकर यहाँ वर्षाको बढ़ाया जा सकता है। उक्त चीजोपर देशभक्त कच्छी बखूबी अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। फिलहाल कच्छकी राजनीतिक विषयमें मैं कुछ न कहना ही पसन्द करूँगा। मुझसे जो

 
  1. कच्छसे विदा लेते वक्त महात्माजीने तूना बन्दरगाहपर वहाँकी जनताको यह सन्देश दिया था। यह गुजरातीमें भी ८–११–१९२५ को प्रकाशित हुआ था।