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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाते हैं और अपेक्षाकृत अधिक उग्र रूपमें भी। हम यहूदियों-जैसी कट्टरताका भी कुछ अंश देखते हैं जो कोरा पागलपन बन जाती है। यहाँ हम १९२२ में प्रकाशित ए॰ सप्रूडनीके संग्रह 'टशेक्स उलिबाजेट' से एक बोल्शेविक कविताके भावोंको देखें : "आप प्रेमका राग गाना पसन्द करते हैं। मैं आपको खून, फाँसी और मृत्युके दूसरे गाने सिखाऊँगा। नील कमलको भीनी सुवास काफी हो चुकी, मैं हत्याके फूल ज्यादा पसन्द करता हूँ। जो व्यक्ति अपने पड़ौसीको प्यार करता है उसे सूलीपर चढ़ाना सबसे बड़ा आनन्द है। एक आदमीके टुकड़े-टुकड़े करने में कितना मजा है। देखो वह डरसे कैसे काँपता है! जब जल्लाद उसका धीरे-धीरे गला घोंटता है, उसका तड़पना, ऐंठना देखो! किसीको जख्मी बनाने में कितना मजा आता है। हमारे मृत्यु दण्डका आदेश वाक्य सुनो—'एक रस्सा, एक गोली, एक दीवाल, गोली चलाओ—और कब्र तुम्हारी तकदीर है।'

यूरोपीय नैतिकताकी तीन बातोंपर जोर दिया गया है, याने कि मालिकोंकी नैतिकता, झूठ बोलने की नीति और हत्याकी नीति। युरोपीय नैतिक स्तरको स्पष्ट करनेके लिए मैं १९१५ में प्रोफेसर कियल बामगार्टनके कीलमें दिये गये भाषणको उद्धृत करता हूँ। (भाषण नाडीट् शे एलीगेमिन जाइटुंग, १५ मई, १९१५ में छपा था)।

साधु प्रोफेसर कहता है कि ईसाका 'सर्मन आन द माउन्ट' (गिरि-प्रवचन) युद्धका बिलकुल बहिष्कार करता है। लेकिन यह नियम सिर्फ अकेले व्यक्तिके लिए है। 'सर्मन आन द माउन्ट' का आचरण सम्बन्धी तरीका हमारे राष्ट्रीय जीवनके स्तरसे अलग नैतिक जीवनके एक हिस्सेपर लागू होता है। अकेले व्यक्तिके लिए इसके नियम नहीं तोड़े जाते हैं, क्योंकि हम समझते है कि एक समयमें वही नियम हमारे राष्ट्रीय और सामाजिक जीवनके लिए साथ-साथ नियम नहीं होता। प्रो॰ बा मगार्टन कहते है कि राज्यको ईश्वरने बनाया है और पूरी ताकतसे उसकी रक्षा की जानी चाहिए। एक महान् राष्ट्रकी यह विशेषता होती है कि वह अपने महान उद्देश्योंको सफल बनानेके लिए नितान्त उग्र उपाय काममें लाता है; यहाँतक कि आक्रमणकारी युद्ध भी करता है।" "हम जर्मन लोग युद्धसे न केवल सहमति रखते हैं, वरन् नितान्त दुस्साहसके साथ उसका नेतृत्त्व भी करते हैं। इन दिनों जिसने प्रसन्नतासे तालियाँ बजाकर लूसीटेनियाके विनाशकी अभ्यर्थना करनेका और जर्मन शस्त्रास्त्रोंकी अदम्य शक्तिपर खुशियाँ मनानेका निश्चय नहीं कर लिया है वह असली जर्मन नहीं है।"

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ८–१०–१९२५