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भाषण : कृष्णनाथ कालेज बहरामपुरमें

है? आप आँकड़ोंका अध्ययन करके पता लगाइए कि ये करोड़ों रुपये कहाँ जाते हैं? दादाभाई नौरोजीने इस सम्बन्धमें कुछ आँकड़े दिये थे, लेकिन अब जिन तथ्योंका उद्घाटन हो रहा है उनके सामने तो वे आँकड़े कुछ भी नहीं है, क्योंकि वास्तवमें भारतकी संपदाका अपहरण दो रूपोंमें किया जा रहा है। भारत सरकारका सैनिक खर्च चलानेके लिए जो धन आता है, उसका अधिकांश गाँवोंसे आता है। यह तो भारतकी सम्पदाके अपहरणका एक रूप हुआ। लेकिन एक दूसरा रूप भी है। अर्थात् श्रम-धनका क्षय। यह बात नहीं कि श्रमिकोंको यहाँसे बाहर ले जाया जा रहा है। लेकिन लोगोंकी काम करनेकी क्षमता छीजती चली जा रही है और एक दिन ऐसा आ सकता है जब वे कहें, "हममें तो अब काम करनेकी कोई शक्ति ही नहीं रह गई।" इस हालतमें हम इतना ही कर सकते है कि राष्ट्रीय आयके संतुलनको थोड़ा सहारा दें। इसीलिए मैं विद्यार्थियोंसे कहता हूँ कि आप आधे घंटेतक अवश्य चरखा चलायें और खादी भी जरूर पहनें।

आपने एक सवाल मिलके कपड़े बनाम विदेशी कपड़े के सम्बन्धमें पूछा है। आपने हालकी आर्थिक परिस्थितियोंका अध्ययन नहीं किया है। मैं मिलके कपड़े और विदेशी कपड़ेको एक ही श्रेणीमें रखता हूँ। मैं नहीं चाहूँगा कि आप अहमदाबाद, बम्बई या बंगलक्ष्मीसे भी आये मिलके कपड़े पहनें। यह तो उनके लिए है जो भारतके बारे में नहीं सोचते, जो उसके भविष्यकी कोई चिन्ता नहीं करते। इसलिए आपकी सच्ची अर्थ-नीति खद्दर पहनना है। खद्दर पहनकर आप एक गरीब बुनकरके श्रमको सहारा देते है। अगर आप खद्दर पहनेंगे तो इस तरह अनेक विधवाओंको सहारा देंगे, उन अनेक किसानोंको सहारा देंगे, जो अपने खाली समयमें कात सकते हैं। इस तरह आप उन अनेक बुनकरोंको सहारा देंगे जो आज अपने श्रमके बदले पूरा पैसा नहीं पा रहे है। आप देशका कोई भी आर्थिक इतिहास पढ़िए, आपको यही ज्ञात होगा कि अधिकांश बुनकर रोजगारके अभावमें यह धंधा छोड़ चुके हैं। लेकिन ईश्वरकी कृपासे एक वर्गके रूपमें उनका अन्त नहीं हुआ है। क्या आप जानते है कि पंजाबमें अधिकांश बुनकर कसाई बन गये है या इससे भी बदतर धंधेमें लग गये हैं? बदतर इसलिए कहा कि कुछ बुनकर उन सैनिकोंमें भी शामिल हो गये हैं, जिन्होंने निर्दोष चीनियोंपर शंघाईमें गोलियां बरसाई और टर्की तथा दुनियाके दूसरे भागोंमें भी निर्दोष लोगोंपर गोलियोंकी बौछार की। पंजाबके बुनकरोंकी यह क्या हालत हो गई है? सिपाही बनना या कसाई बनना वैसे कुछ बुरा नहीं है। लेकिन बुनकरोंका अपना प्रतिष्ठाजनक पेशा छोड़कर दूसरे पेशे अपनाना बुरा है। इस पापकी जिम्मेदारी मुझपर और आपपर है। इसीलिए मैं आपसे कहता हूँ कि आपकी सच्ची अर्थ-नीति यही है कि आप खद्दर पहनें। आप कातें और कातते रहें। आप खद्दरको सस्ता बनानेके लिए कातें। इसे आप अनुशासनके रूपमें स्वीकार करें। यह आपको अपनेआपको पवित्र बनाने में सहायता देगा। आधे घंटेतक चरखेके पास शान्तिसे बैठिये और फिर देखिए कि आपके हृदयमें कितना परिवर्तन हो गया है। मैं आपको ऐसे बहुतसे पुरुषों और स्त्रियोंके, अच्छे प्रशासकोंके उदाहरण दे सकता हूँ। इन प्रशासकोंमें