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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अब मैं आपके प्रश्नोंको लेता हूँ। आपने पूछा है कि चरखा क्या कर सकता है। मैं समझता हूँ, मैं आपको समझा चुका हूँ कि वह क्या कर सकता है। वह भारतके लिए बहीं करेगा जो ऋषियोंके युगमें करता था। वह स्वर्णकाल था। में कुछ इतिहासकारों की इस बातको एक क्षणके लिए भी नहीं मानता कि वह काल तो कवियोंकी कल्पनाकी उपज है। नहीं, ऐसा नहीं है। हमारे देशमें ऐसा एक स्वर्णकाल अवश्य हो चुका है। और निश्चय ही हम एक दूसरे कालचक्रमें प्रवेश कर रहे है, जो हमें फिर एक नये स्वर्णकालमें ले जायेगा। हम उस स्वर्णकालमें जिये हैं, जब इस देशमें आजकी तरह करोड़ों लोग अर्धभूखे नहीं थे। चरखेकी नीति और सिद्धान्त यह है कि आपके और ग्रामवासियों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो। यही ग्रामोद्धारका मतलब है—जो आपका दूसरा प्रश्न है। ग्रामोद्धारका कार्य चरखेके चारों ओर ही चलना चाहिए। जबतक आपके हाथमें भूखे ग्रामीणों के लिए रोटीका एक टुकड़ा न हो, तबतक आपको गाँवोंमें नहीं जाना चाहिए। अगर सर प्र॰ च॰ रायका कथन सच माना जाये तो सालमें पूरे छः महीने भारतके किसानों—अर्थात् यहाँकी आबादीके ८० प्रतिशत लोगोंके पास कोई काम नहीं रहता। वे बेकार रहते हैं। क्या आप ऐसी कल्पना कर सकते है कि किसी भी देशके किसान वर्ष चार महीने बेकार रहें और फिर भी अपना पेट भर सकें? इस युगमें तो कोई करोड़पति भी इतने अवकाशका उपभोग नहीं कर सकता। वह भी तुरन्त देखेगा कि कुछ घाटा हो गया है जिसे पूरा करना है, या यह कि उसके कारोबारकी व्यवस्था बिगड़ गई है। अगर आप भारतकी इन झोंपड़ियोंमें कुछ जीवनका संचार करना चाहते हों, तो वह चरखा चलाकर ही सम्भव है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि जो कोई प्रतिदिन एक गज भी सूत कातता है, वह उस हदतक भारतकी सम्पत्तिमें वृद्धि करता है, उसके दुःखको दूर करने के लिए कुछ करता है, और 'गीता' में कहा है :

"जैसा आचरण श्रेष्ठ जन करते हैं, वैसा ही साधारण इतर जन भी करते हैं।"[१]

आप भारतके भावी महान पुरुष हैं, आप धरतीके सार तत्त्व है। भारतकी भावी आशाके आधार आप ही अगर यह नहीं जानेंगे कि इस समस्यासे कैसे निपटा जाय, जन-साधारणकी भयानक दरिद्रताको कसे दूर किया जाये, तो फिर इसका समाधान आप कैसे करेंगे? फिर आपकी शिक्षासे क्या लाभ? क्या आप सात लाख गाँवोंकी भस्मराशिपर खड़े रहकर सन्तुष्ट हो जायेंगे? क्या आप सात लाख गाँवोंका नामोनिशान धरतीपर से मिट जाने देंगे? भारतमें मान लीजिए कुछ सौ नगर हैं, जिनकी कुल आबादी ३० करोड़ नहीं बल्कि लगभग दो करोड़ है, तो क्या आप उन्हींको लेकर सन्तुष्ट रहेंगे और ग्रामवासियोंको मिट जाने देंगे? क्या आप वही काम करेंगे जैसा करने की बात दक्षिण आफ्रिकाके श्री मिलनरने कही है। वे कहते है कि वे भारतीयोंको कानूनी तौरपर नहीं, बल्कि भूखों मारकर भगायेंगे। आप आधुनिक शिक्षा पायें और इसके लिए गाँवोंको भूखसे तड़पना पड़े! क्या यही भारतकी अर्थ-व्यवस्था

  1. "यद्यदारति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः
    स थत्प्रमार्ण कुरूते लोकस्दनुवर्तते।"

    भगवद् गीता, अध्याय ३–२१।