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२०. भेंट: समाचारपत्रोंके प्रतिनिधियोंसे

७ अगस्त, १९२५

मैं अभी-अभी सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके घरसे लौटा हूँ।[१] मैं तो उम्मीद कर रहा था कि अपने वादेके मुताबिक अगले शुक्रवारको मैं फिर उनके दर्शन करने जाऊँगा और वहाँ उनके साथ शिक्षाप्रद और आनन्दप्रद वार्तालापका सुख उठाऊँगा। इससे आप समझ सकते हैं कि जब मुझे इसके बजाय संवेदना प्रकट करने के लिए वहाँ जाना पड़ा तो मैं वहाँ कितने भारी मनसे गया होऊँगा। वहाँ मझे जिन स्त्रियोंको देखनेका मौका मिला, उनका दुःख असह्य था। लेकिन यह दुःख केवल उनका ही नहीं है। सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी अपने पीछे निजी कुटुम्बियोंकी अपेक्षा कहीं ज्यादा बड़ा परिवार छोड़ गये हैं और इस दुःखमें वे सब शरीक हैं। मैं आशा करता हूँ कि इस बातको सोचकर उनके शोक-संतप्त परिवारको शान्ति मिलेगी।

एक समय वे भारतके नहीं तो कमसे-कम बंगालके सबसे पूज्य व्यक्ति थे। सन् १९०१ में अपनी युवावस्थामें, मैं दक्षिण आफ्रिकासे आकर कांग्रेस अधिवेशनमें[२] शामिल हुआ था, उस समय मैंने अपनी आँखों देखा कि कांग्रेसकी कार्यवाहीपर उनका कितना प्रभाव था और किस प्रकार इस तपे-सधे सिपाहीके बिना कोई काम आगे नहीं बढ़ पाता था। वे आधुनिक भारतके निर्माताओंमें से एक थे और अगर कांग्रेसके एकमात्र नहीं तो अनेक जन्मदाताओं में से एक तो थे ही। मुझे पूरा यकीन है कि जब यह सब संघर्ष समाप्त हो जायेगा और हमें हमारा स्वत्व प्राप्त हो जायेगा तब हमारे देशभाई उनकी सेवाओंको उतना ही याद करेंगे जितना आज भारतके हृदयसम्राट् बने हुए किसी अन्य देशभक्तकी सेवाओंको याद करेंगे। सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी अपने समयकी सबसे बड़ी विभूतियोंमें से थे—कोई भी किसी बातमें उनसे बढ़कर नहीं था, और मैं जानता हूँ कि यद्यपि बादमें देशका उनसे मतभेद हो गया था और कुछ मतभेद तो बुनियादी प्रश्नोंपर थे, फिर भी यह देश सदा उनका कृतज्ञ रहेगा और कुछ-एक वर्ष नहीं, बल्कि एक पीढ़ीसे अधिक कालतक भारतकी सेवा करनेवाले इस देशभक्तकी स्मृति अपने मनमें सदा सँजोये रहेगा। उन्होंने देश-सेवाका कार्य तब शुरू किया जब हममें से बहुत-से लोगोंका जन्म भी नहीं हुआ था और तबसे निरन्तर वे इस कार्यमें लगे रहे।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, ८–८–१९२५
  1. गांधीजी उसी दिन सुबह सी॰ एफ॰ और जमुनालाल बजाजके साथ संवेदना प्रकट करने के लिए बैरकपुर गये थे।
  2. देखिए खण्ड ३ पृष्ठ २२९–३२।