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सभापतियोंसे

करनेसे सबकी शक्ति बढ़ सकती है? ऐसी मेहनत है कताई। कताईके बिना कपड़ा तैयार नहीं होगा और कपड़ा नहीं होगा तो जिस साठ करोड़ रुपयेका कपड़ा विदेशसे आता है, वह रुपया हम नहीं बचा सकेंगे। इसके अतिरिक्त, यह रुपया बचा लेना ही हमारे लिए बस नहीं है। यह रुपया हमें हिन्दुस्तानके करोड़ों लोगोंमें बाँटना चाहिए।

ऐसा करनेकी एकमात्र युक्ति चरखा है। ऐसे सार्वजनीन और फलप्रद श्रमसे हम विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकते हैं, और ऐसा करनेसे हमारी शक्ति इतनी बढ़ सकती है कि उसके बलपर हम स्वराज्य पा भी सकते हैं और उसे सुरक्षित भी रख सकते हैं। अतः, मैंने कहा, यदि लोग यहाँ लोकमान्यको सम्मान देनेके लिए आये हों तो उन्हें चाहिये कि वे विदेशी कपड़ेका सर्वथा त्याग कर दें और केवल खादी ही पहनें तथा कमसे-कम आधा घंटा रोजाना कातें।

प्रह्लादको सोते-बैठते, खेलते-खाते राम-नामकी ही रट लगी हुई थी। यहाँ तक कि तपते हुए लाल लोहेके खम्भेसे बाँध दिये जानेपर भी वह राम-नाम ही पुकारता रहा। इसके अतिरिक्त बेचारा कर ही क्या सकता था? खादी और चरखेके सम्बन्धमें मेरी ऐसी ही स्थिति है। मुझे कोई बाँधकर मारे तो भी मैं स्वराज्य-प्राप्तिके श्रेष्ठ साधनके रूपमें चरखे और खादीकी ही पुकार करूँगा। जिस प्रकार सूर्यके बिना सौरमण्डलका कोई अर्थ नहीं, जिस प्रकार सेनापतिके बिना सेना शवके समान होती है, जिस प्रकार राम-नामके बिना सारे कार्य निरर्थक है, उसी प्रकार चरखेके बिना स्वराज्यकी सभी प्रवृत्तियाँ मिथ्या हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ९–८–१९२५
 

२४. सभापतियोंसे

न्यायाधीशको कम बोलना होता है। उसका काम तो दूसरोंके अच्छे-बुरे, सरसनीरस भाषण सुनना है। इसीलिए कोई न्यायाधीश अपने आगे पड़े कागजोंपर मनमानी लकीरें खींचकर उन्हें बिगाड़ता रहता है, कोई उनपर चित्र बनाता है तो कोई पास पड़ी डोरीको हाथमें लेकर खेलता रहता है। सभापतिकी स्थिति भी न्यायाधीश जैसी ही दयनीय होती है।

मौलवी अब्दुल रसूलकी पुण्य-तिथिपर मुझे सभापति-पदका सम्मान दिया गया था। मौलवी अब्दुल रसुलको मैं व्यक्तिगत रूपसे नहीं जानता था पर पुछनेपर मुझे बताया गया कि वे विद्वान् बैरिस्टर होनेपर भी निरभिमानी और स्वराज्यके पूरे समर्थक थे तथा अपनी स्वतन्त्रता और स्वाभिमानकी रक्षाके प्रति सतत सजग रहते थे। वे हिन्दू-मुस्लिम एकताको धर्म मानते थे तथा स्वदेशी के पुजारी थे।

ऐसे व्यक्तिकी पुण्य-तिथि मनाने के लिए की गई सभाके सभापति-पदका निर्वाह शोभनीय ढंगसे सम्पन्न करनेके लिए मैं क्या करूँ—यह सवाल था। मेरी किस्मतकी