पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/९

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भूमिका

प्रस्तुत खण्डमें १ अगस्तसे २२ नवम्बर १९२५ तककी सामग्री आ जाती है। इस अवधिमें गांधीजीने बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और कच्छका दौरा किया और अनेक परिषदों और सभाओं में भाषण दिये। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी पटनामें जो बैठक हुई, स्वराज्य-दल उससे पुनःप्रतिष्ठित हो गया और कांग्रेसकी राजनीतिक हलचलें बढ़ गई। आर्थिक मामलोंपर अधिक जोर दिया जाने लगा, उदाहरणके लिए अखिल भारतीय चरखा संघकी स्थापना और चरखेके अधिक संयोजित तथा व्यापक उपयोगके द्वारा स्वदेशी आन्दोलनका बढ़ाया जाना।

सामाजिक क्षेत्रमें गांधीजी अस्पश्यता-निवारण और गोरक्षाके लिए सही पद्धतियाँ अपनानेपर जोर देते रहे। वे जहाँ-कहीं भी गये, उन्होंने महिलाओं, विद्याथियों और शिक्षक, कांग्रेस-कार्यकर्ता और मिल-मजदूरों, कट्टर-पंथी हिन्दुओं, सुधारकों और ईसाई मिशनरियों—सभी वर्गोंके लोगोंसे विचार-विनिमय और बातचीत की

देशकी समूची राजनीतिक परिस्थितिका मुकाबला करनेके खयालसे वे रचनात्मक कार्यक्रम और लोगोंमें विचार-प्रचारपर जोर देते रहे। वे मानते थे कि लोगोंको अपनी अवस्थाकी प्रतीति करानेके लिए उनके बीच लगातार काम करना आवश्यक है। (पृष्ठ १४३-४४) राज्य-सचिव लॉर्ड बर्कनहेडने जो ठेस पहुँचानेवाला व्याख्यान दिया था, गांधीजीकी रायमें उसका एकमात्र उत्तर था : "अधिक काम।" एकता सम्मेलनके बारेमें भी उन्होंने यही कहा कि "ज्यों ही मुझे लोगोंमें देशकी वर्तमान जरूरतोंके आगे अपने व्यक्तिगत या दलगत विचारोंकी परवाह न करनेकी एक आम प्रवृत्ति दिखाई देगी, त्यों ही में सबसे आगे बढ़कर ऐसा सम्मेलन बुलाऊँगा।" (पृष्ठ १६३)

२२ सितम्बरको पटनामें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी जो बैठक हुई, उसमें सारे अधिकार स्वराज्य-दलके हाथों सौंप दिये गये। इसके बाद गांधीजीने कांग्रेसके दोनों पक्षोंके सम्बन्धोंका नियमन, करने के लिए एक सीधा-सादा सूत्र निश्चित कर दिया : "जहाँ-कहीं दोनों दलोंके लोगोंकी संख्या बराबर-बराबर हो, वहाँ असहयोगियों अथवा अपरिवर्तनवादियोंको चाहिए कि वे पूरा अधिकार स्वराज्यवादियोंको दे दें और यदि वे स्वयं किन्हीं पदोंपर हों तो उन्हें छोड़ दें। जहाँ अपरिवर्तनवादियोंका भारी बहुमत हो वहाँ वे स्वराज्यवादियों के काममें रुकावट न डालें और अपनी अन्तरात्माके धिकारको और अधिक व्यापक बनाना पटना-बैठकका दूसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था। इसके कारण कांग्रेसमें और अधिक लोगोंका शामिल होना सम्भव हो गया; कांग्रेस अब अनिवार्य रूपसे एक राजनीतिक संगठन बन गया, जिसे स्वराज्य-दलके माध्यमसे अपना काम करते रहना था (पृष्ठ ३७०)। कांग्रेसके इस परिवर्तित रूपमें अपने स्थानके