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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

और दूसरा यह था कि सेवाधर्म अंगीकार करनेवाले मनुष्यको सदाके लिए दरिद्रताका व्रत ले लेना चाहिए एवं किसी ऐसे धन्धेमें नहीं पड़ना चाहिए जिसके कारण सेवाके कार्यमें उसे कभी कुछ भी संकोच हो अथवा उसमें तनिक भी विघ्न पड़े।

टुकड़ीमें रहकर काम करनेकी अवधिमें ही मेरे पास इस आशयके पत्र और तार आने लगे कि जैसे भी हो मैं जल्दीसे-जल्दी ट्रान्सवाल जा पहुँचूँ। इसलिए मैं फीनिक्समें सबसे मिलकर जल्दी ही जोहानिसबर्ग पहुँच गया और वहां मैंने उस विधे- यकका मसविदा पढ़ा जिसका उल्लेख मैं ऊपर कर चुका हूँ। यह २२ अगस्त १९०६ के ट्रान्सवाल सरकारके असाधारण गजटमें छपा था। मैं इस गजटको दफ्तरसे घर लाया। घरके पास ही एक छोटी-सी पहाड़ी थी। मैं उसीपर बैठकर अपने साथीके साथ 'इंडियन ओपीनियन के लिए उस विधेयकका अनुवाद कर रहा था। अनुवाद करते हुए उस विधेयककी धाराओंको पढ़ते-पढ़ते मेरा मन आशंकासे भर गया । मुझे उसमें हिन्दुस्तानियों के प्रति द्वेषके अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दिया। मुझे ऐसा लगा कि यदि यह विधेयक कानूनके रूपमें पास हो गया और हिन्दुस्तानियोंने इसे स्वीकार कर लिया तो हिन्दुस्तानी कीमके पैर दक्षिण आफ्रिकासे बिलकुल उखड़ जायेंगे । मुझे यह बात साफ-साफ दिखाई दे गई कि हिन्दुस्तानियोंके लिए यह जीवन-मरणका प्रश्न है। मुझे यह भी भास गया कि यदि कौम इसे प्रार्थनापत्रोंसे रोकनमें सफल न हुई तो उसके बाद भी उसे कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा। इस कानूनको माननेसे तो मर जाना अच्छा है। किन्तु कोई मरना स्वीकार कैसे कर सकता है ? हिन्दुस्तानी कीम ऐसा- कौन-सा जोखिम उठाये अथवा उठानेका साहस करे कि जिससे उसके सामने सफलता अथवा मरणके सिवा कोई रास्ता ही न रहे ? मेरे सम्मुख भयंकर दीवार आकर खड़ी हो गई और मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया। जिस विधेयकने मुझे इतना विचलित कर दिया था उसका ब्यौरा पाठकोंके जानने योग्य है। उसका सार यह था :

ऐसे हिन्दुस्तानी पुरुष, स्त्री और आठ वर्ष या आठ वर्षसे अधिक आयुके बालक- बालिकाको जिसे ट्रान्सवालमें रहनेका अधिकार कायम रखना है, एशियाई दफ्तर में जाकर अपने नामका पंजीयन करा लेना चाहिए और उसका परवाना ले लेना चाहिए। प्राथियोंको परवाना लेते समय अपना पुराना परवाना पंजीयन अधिकारीको सौंप देना चाहिए। पंजीयनके प्रार्थनापत्रमें प्राथियों को अपना नाम, निवासस्थान, जाति और आयु आदि सबका ब्यौरा देना चाहिए। पंजीयन अधिकारीको चाहिए कि वह प्रार्थीके शरीरपर जो खास-खास निशान हों उन्हें लिखले। उसे उसकी दसों अँगुलियों और अँगूठोंके निशान ले लेन चाहिए। जो हिन्दुस्तानी स्त्री या पुरुष निश्चित अवधिके भीतर परवाना बदलवानेका यह प्रार्थनापत्र नहीं देगा उसका ट्रान्सवालमें रहनेका हक रद कर दिया जायेगा। प्रार्थनापत्र न देना भी कानूनी अपराध होगा। इस अपराधके लिए कैद, जुर्माना और यदि अदालत चाहे तो देशनिकालेका दण्ड दिया जा सकता है। नाबालिग बच्चोंके प्रार्थनापत्र माँ-बापको देने चाहिए और उनकी अँगुलियोंके निशान देनेके लिए उनको पंजीयम अधिकारीके सम्मुख प्रस्तुत करनेकी जिम्मेदारी भी उन्हींकी

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