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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

लेनेवालोंमें से कुछ या बहुत से पहली कसौटीमें ही कमजोर साबित हो जायें। हमें जेल जाना पड़े। जेलमें अपमान सहने पड़ें। भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी भी सहनी पड़े। सख्त मशक्कत करनी पड़े। उद्धत सन्तरियोंकी मार भी खानी पड़े। जुर्माने हों। कुर्कीमें माल- असबाब भी बिक जाये । यदि लड़नेवाले बहुत थोड़े रह गये, तो आज भले हमारे पास बहुत पैसा हो, कल हम कंगाल बन सकते हैं; हमें निर्वासित भी किया जा सकता है। जेलमें भूखे रहते और दूसरे कष्ट सहते हुए हममें से कुछ बीमार हो सकते हैं और कोई मर भी सकते हैं । अर्थात् थोड़ेमें कहा जा सकता है कि जितने कष्टोंकी आप कल्पना कर सकते हैं वे सभी हमें भोगने पड़ें- और इसमें कुछ भी असम्भव नहीं है. फिर भी समझदारी इसीमें है कि यह सब सहन करना होगा, यह मानकर ही हम शपथ लें। मुझसे कोई पूछे कि इस लड़ाईका अन्त क्या होगा, और कब होगा तो मैं कह सकता हूँ कि अगर सारी कौम लड़ाईमें पूरी तरह उत्तीर्ण हो गई तो लड़ाई- का फैसला तुरन्त हो जायेगा और यदि संकटका सामना होनेपर हममें से बहुतेरे फिसल गये तो लड़ाई लम्बी होगी। लेकिन इतना तो मैं हिम्मतके साथ और निश्चय- पूर्वक कह सकता हूँ कि मुट्ठीभर लोग भी यदि अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहे तो इस लड़ाईका एक ही अन्त समझिए -- अर्थात् इसमें हमारी जीत ही होगी।

"अब मेरी व्यक्तिगत जिम्मेदारीके बारेमें दो शब्द । मैं एक ओर तो प्रतिज्ञाकी जोखिम बता रहा हूँ, पर साथ ही आपको शपथ लेनेकी प्रेरणा भी दे रहा हूँ। इसमें मेरी अपनी जिम्मेदारी कितनी है, इसे में पूरे तौरपर समझता हूँ। यह भी संभव है। कि आजके जोश या गुस्से में आकर सभामें उपस्थित लोगोंका बड़ा भाग प्रतिज्ञा कर ले, पर संकटके समय कमजोर साबित हो, और मुट्ठीभर लोग ही अन्तिम ताप सहन करनेके लिए बच जायें। फिर भी मुझ-जैसे आदमीके लिए तो एक ही रास्ता होगा; मर मिटना, पर इस कानूनके आगे सिर न झुकाना। मैं तो मानता हूँ कि फर्ज करो ऐसा हो -- ऐसा होनेकी सम्भावना तो बिलकुल नहीं है, फिर भी फर्ज कर लें कि सब गिर गये और में अकेला ही रह गया, तो भी मेरा विश्वास है कि प्रतिज्ञाका भंग मुझसे हो ही नहीं सकता। इस कथनका तात्पर्य आप समझ लें । यह घमण्डकी बात नहीं, बल्कि खास तौरसे इस मंचपर बैठे हुए नेताओंको सावधान करनेकी बात है। अपनी मिसाल लेकर में नेताओंसे विनयपूर्वक कहना चाहता हूँ कि अकेला रह जानेपर भी दृढ़ रहनेका निश्चय या वैसा करनेकी शक्ति न हो, तो इतना ही नहीं कि आप प्रतिज्ञा न करें, बल्कि लोगोंके सामने अपना विरोध जाहिर कर दें और आप अपनी सम्मति यहाँ न दें। यह प्रतिज्ञा यद्यपि हम सब साथ मिलकर करना चाहते हैं फिर भी कोई इसका यह अर्थ कदापि न करें कि एक या अनेक व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दें, तो दूसरे सहज ही बन्धन मुक्त हो सकते हैं। हरएक अपनी-अपनी जिम्मेदारीको पूरी तरहसे समझकर स्वतन्त्ररूपसे प्रतिज्ञा करे, और यह समझकर करे कि दूसरे कुछ भी करें, मैं खुद तो मरते दमतक उसका पालन करूंगा ही। "१


१. देखिए खण्ड ५, पृ४ ४३०-३३ ।

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