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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने साथियोंसे सलाह की । वह भाषा उनको भी पसन्द नहीं आई। किन्तु उन्होंने भी, जनरल स्मट्स उस मसविदेमें फेरफार करना स्वीकार कर लें तो, समझौता करना ठीक माना। बाहरसे आनेवाले लोगोंने मुझे नेताओंका यह सन्देश दे दिया था कि यदि उचित समझौता होता हो तो मैं उनकी सहमतिकी राह देखे बिना समझौता कर डालूँ। मैंने इस मसविदेपर श्री क्विन और थम्बी नायडूके हस्ताक्षर कराये और तीनोंके हस्ताक्षरों सहित उसे कार्टराइटको दे दिया।

इसके दूसरे या तीसरे दिन अर्थात् ३० जनवरी १९०८ को जोहानिसबर्ग जेलके पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट मुझे जनरल स्मट्सके पास प्रिटोरिया ले गये । हमारे बीच बहुत- सी बातें हुईं। उन्होंने मुझे श्री कार्टराइटसे हुई अपनी सब बातचीत बताई। कौम मेरे जेल जानेके बाद भी अडिग रही, इसपर उन्होंने मुझे बधाई दी और कहा, "मुझे आप लोगोंसे द्वेष हो ही नहीं सकता। मैं भी बैरिस्टर हूँ, यह आप जानते ही हैं। मेरे समयमें मेरे साथ कुछ हिन्दुस्तानी विद्यार्थी भी पढ़ते थे। मुझे तो केवल अपने कर्त्तव्यका पालन करना है। गोरे लोग इस कानूनकी मांग करते हैं। ये लोग मुख्यतः बोअर नहीं हैं, बल्कि अंग्रेज हैं यह बात आप स्वीकार करेंगे। मैं आपके किये हुए फेर- फारको स्वीकार करता हूँ। मैंने जनरल बोथासे भी बात कर ली है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपमें से ज्यादातर लोग परवाना ले लेंगे तो मैं एशियाई कानून- को रद कर दूंगा। मैं ऐच्छिक परवानोंको स्वीकार करनेके लिए कानून बनाऊँगा तो उसके मसविदेकी नकल आपकी राय लेनके लिए भेज दूंगा। मैं नहीं चाहता कि यह लड़ाई फिर शुरू की जाये; मैं आप लोगोंकी भावनाका सम्मान करना चाहता हूँ।"

इस आशयकी बातचीत होनेके बाद जनरल स्मट्स खड़े हो गये। मैंने पूछा, 'अब मुझे कहाँ जाना है और मेरे साथके दूसरे कैदियोंका क्या होगा? उन्होंने हँसकर कहा, 'आप तो इस समयसे ही मुक्त है। आपके साथियोंको कल सवेरे छोड़ दिया जायेगा, मैं यह आदेश टेलीफोनसे दे रहा हूँ। किन्तु मेरी इतनी सलाह है कि आप लोग बहुत अधिक सभा-समारोह न करें। यदि करेंगे तो सम्भव है कि सरकारकी स्थिति उससे कुछ विषम बने । "

मैंने कहा, "आप विश्वास रखें में सभाकी खातिर सभा बिलकुल नहीं होने दूंगा, किन्तु समझौता किस प्रकार हुआ है, उसका स्वरूप क्या है और अब हिन्दु- स्तानियोंकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ गई है, यह बात समझाने के लिए मुझे सभाएँ करनी ही होंगी। "

जनरल स्मट्सने कहा, "ऐसी सभाएँ तो आप जितनी करनी चाहें, करें। मैं क्या चाहता हूँ यह आप समझ गये, बस इतना ही काफी है। "

उस समय शामके लगभग सात बजे होंगे। मेरे पास तो एक पाई भी न थी । जनरल स्मट्सके मन्त्रीने मुझे जोहानिसबर्ग जानेके लिए किराये के पैसे दिये । यह बातचीत प्रिटोरियामें हुई थी। प्रिटोरियामें वहाँके हिन्दुस्तानियोंके पास ठहरकर समझौतेकी बात कहना आवश्यक नहीं था। मुख्य लोग तो जोहानिसबर्गमें थे। प्रधान

१. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३९-४१ ।

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