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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

साथ बड़े उदार हृदय व्यक्ति थ । उन्होंने प्रायः सदा ही अपने अग्रलेखोंमें हिन्दुस्तानि- योंका पक्ष लिया था। उनके और मेरे बीच प्रगाढ़ स्नेह हो गया था। वे मेरे जेल जाने पर जनरल स्मट्ससे मिले। जनरल स्मट्सने उन्हें मध्यस्थ बनाना स्वीकार कर लिया। वे कौमके अन्य नेताओसे भी मिले। इन नेताओंने उन्हें एक ही जवाब दिया, 'कानून- की बारीकियोंको हम नहीं जानते। गांधीजी जेलमें हैं, इसलिए हम कोई बातचीत करें यह नहीं हो सकता। हम समझोता चाहते हैं, किन्तु यदि सरकार हमारे लोगोंको जलमें रखते हुए ही समझौता करना चाहती हो तो आपको गांधीजीसे मिलना चाहिए। वे जो कुछ करेंगे हम उसे मान लेंगे।'

इसपर अल्बर्ट कार्टराइट मुझसे मिलने आये और अपने साथ जनरल स्मट्सका बनाया हुआ अथवा स्वीकार किया हुआ समझौतेका मसविदा भी लाये। उसकी भाषा गोलमोल थी । वह मुझे पसन्द नहीं आई। फिर भी एक परिवर्तनके साथ मं स्वयं उसपर हस्ताक्षर करनेके लिए तैयार था। फिर भी मैंने कहा कि बाहरवालोंकी मंजूरी होनेपर भी मैं इसपर अपने जेलके साथियोंकी सम्मति लिए बिना हस्ताक्षर नहीं कर सकता।

इस कागजका मतलब इतना ही था कि 'हिन्दुस्तानी अपने परवाने स्वेच्छासे बदल लें तो उनपर कानूनी अमल न होगा। सरकार हिन्दुस्तानियोंसे सलाह करके परवाने का रूप निश्चित करेगी और यदि हिन्दुस्तानी कौमका बड़ा भाग स्वेच्छासे परवाने ले लेगा, तो सरकार खूनी कानूनको रद कर देगी और ऐच्छिक परवानोंको कानूनी बनाने के लिए दूसरा कानून बनायेगी। इसमें खूनी कानूनको रद करनेकी बात साफ नहीं थी। मैंने उसमें ऐसा फेरफार सुझाया जो मेरी दृष्टिसे इस बातको साफ करने- के लिए जरूरी था । किन्तु अल्बर्ट कार्टराइटको इतना फेरफार भी अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा, जनरल स्मट्सने यह कागज अन्तिम रूपसे बनाया है। मैंने स्वयं भी इसको पसन्द कर लिया है। मैं आपको इतना विश्वास दिलाता हूँ कि यदि आप सब परवाने ले लेंगे तो फिर खूनी कानूनको रद हुआ ही समझें।

मैंने उत्तर दिया, “समझौता हो या न हो, किन्तु हम आपकी सहानुभूति और सहायताके लिए सदा आभारी रहगे। में गैर-जरूरी एक भी फेरफार नहीं कराना चाहता। जिस भाषासे सरकारकी प्रतिष्ठाकी रक्षा हो मैं उस भाषाका विरोध नहीं करूँगा। किन्तु जहाँ मुझे स्वयं उसके अर्थके सम्बन्धमें शंका हो वहाँ तो मुझे फेरफार सुझाना ही होगा और यदि अन्ततः समझौता होना ही है तो दोनों पक्षोंको इस मसविदेमें फेरफार करनेका अधिकार होना ही चाहिए। यह अन्तिम है! ' यह कह- कर जनरल स्मट्सको हमपर पिस्तोल नहीं ताननी चाहिए। खूनी कानूनकी पिस्तौल तो हमपर तनी ही हुई है, इसलिए इस दूसरी पिस्तौलका असर हमपर हो भी क्या सकता है ? "

श्री कार्टराइट इस तर्कके विरुद्ध कुछ नहीं कह सके और उन्होंने मेरे सुझाये हुए फेरफारको जनरल स्मट्सके सामने रखना स्वीकार कर लिया।

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ६४-७३।

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