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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चोरी-छिपे प्रवेश न करें। इसके लिए यह आवश्यक है कि पर्याप्त हिन्दुस्तानी शिनाख्ती निशानोंवाले और जो बदले न जा सकें ऐसे परवाने लेकर गोरोंके सन्देहको दूर करें और उनको अभय कर दें। सरकार इस सिद्धान्तको नहीं छोड़ सकती। इस सिद्धान्त- को हमने अबतक अपने व्यवहारसे स्वीकार भी किया है, अतः हम उसके विरुद्ध तबतक नहीं लड़ सकते जबतक इसके लिए नये कारण उत्पन्न न हो जायें। हमारी लड़ाई इस सिद्धान्तको तोड़ने के लिए नहीं है बल्कि कानूनके काले दागको दूर करनेके लिए है। अतः यदि हम अब अपनी जातिमें उत्पन्न इस नये और प्रचण्ड बलका प्रयोग एक नया मुद्दा मनवाने के लिए उठायेंगे तो इससे सत्याग्रहियोंके सत्यपर आंच आयेगी। इसलिए उचित रूपमें तो हम इस समझौतेका विरोध कर ही नहीं सकते। अब खूनी कानून रद किये जाने से पहले हम अपने हाथ कैसे कटा दें और शस्त्रहीन कैसे हो जायें, इस तर्कपर विचार करें। इसका उत्तर तो बहुत सीधा है। सत्याग्रही भयको तो एक ओर ही रख देता है, इसलिए वह विश्वास करते कभी डरता नहीं । बीस बार विश्वासघात किये जानेपर भी वह इक्कीसवीं बार विश्वास करनेके लिए तैयार रहता है, क्योंकि सत्याग्रह की गाड़ी तो विश्वाससे ही चलती है; अतः विश्वास करनेमें वह अपने हाथ कटा देता है, ऐसा कहना तो सत्याग्रहको न समझनेके बराबर है । मान लें कि हमने नये ऐच्छिक परवाने ले लिये। फिर सरकारने विश्वासघात किया और खूनी कानूनको रद न किया तब क्या हम उस समय सत्याग्रह न कर सकेंगे ? इन परवानोंको ले लेनेपर भी यदि हम उचित समयपर उनको दिखानेसे इनकार कर देंगे तो इनका क्या मूल्य होगा? उस हालतमें ट्रान्सवालमें हजारों हिन्दुस्तानी चोरीसे प्रविष्ट हो जायें तो सरकार उनके और हमारे बीच किस प्रकार अन्तर कर सकेगी । अतः सरकार, कानूनसे या कानूनके बिना, हमारी सहायताके बिना हमपर किसी भी तरह नियन्त्रण नहीं रख सकती। कानूनका अर्थ केवल इतना ही है कि यदि हमपर सरकार अंकुश लगाना चाहे और हम उसे स्वीकार न करें तो हम दण्डके पात्र होंगे। सामान्यतः होता यह है कि आदमी दण्डके भयसे अंकुशको मानता है। किन्तु सत्याग्रही इस सामान्य नियमका उल्लंघन करता है। यदि वह अंकुशको मानता है तो उस कानूनके दण्डके भयके कारण नहीं, बल्कि इस कारण मानता है कि वह उसको माननेमें लोक-कल्याण समझता है । इस समय इस परवानेके सम्बन्धमें हमारी स्थिति भी ऐसी ही है। सरकार हमें चाहे जितना धोखा दे, किन्तु वह इस स्थितिको नहीं बदल सकती । इस स्थितिके उत्पन्नकर्त्ता तो हम ही हैं और उसको बदल भी हम ही सकते हैं। जबतक सत्याग्रहका शस्त्र हमारे हाथमें है हम तबतक स्वतन्त्र और निर्भय हैं। यदि कोई मुझसे यह कहे कि आज कौममें जो शक्ति आई है वह चली जायेगी और फिर कदापि नहीं आयेगी, तो मैं उसे इसका उत्तर यह दूंगा कि ऐसा कहनेवाला सत्याग्रही नहीं है और सत्याग्रहका तत्त्व नहीं समझता। उसके कहनेका अर्थ तो यही हो सकता है कि आज जो बल प्रकट हुआ है वह सच्चा नहीं है, बल्कि नशेकी तरह झूठा और क्षणिक है। यदि यह बात ठीक हो तो हम विजयके योग्य नहीं हैं और ऐसी अवस्थामें हम यदि जीत भी गये तो हम जीत

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