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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

उन्होंने उस पत्रमें मुझे आश्वासन दिया था और चेतावनी भी दी थी। उन्हें भय था कि जब इस तरह वचन-भंग हुआ है तब लड़ाई बहुत लम्बी चलेगी। हम मुट्ठी- भर लोग कबतक टक्कर ले सकेंगे, उन्हें यह शंका भी थी। हमने वहां तैयारियाँ की। इस बारकी लड़ाईमें धीरजसे बैठनेकी तो गुंजाइश ही न थी । कैद काटनी पड़ेगी, हमने यह बात भी समझ ली थी। हमने टॉल्स्टॉय फार्मको बन्द करनेका निश्चय किया। कुछ कुटुम्ब अपने पुरुषोंके जेलसे छूट जानेपर अपने-अपने घर चले गये। बाकी जो बचे वे मुख्यतः फीनिक्सवासी थे, इसलिए अबसे सत्याग्रहियोंका केन्द्र फीनिक्समें रखनेका निश्चय किया गया। यह निश्चय इसलिए भी किया गया था कि यदि तीन पौंडकी लड़ाई में गिरमिटियोंको भी लेना है तो उनसे मिलते-जुलते रहनेके लिए नेटालमें रहना अधिक सुविधाजनक हो सकेगा।

अभी लड़ाई शुरू करनेकी तैयारियाँ चल ही रही थीं कि इतने में एक नया विघ्न उपस्थित हुआ और उससे स्त्रियोंको भी लड़ाईमें सम्मिलित होनेका अवसर मिला। कुछ वीर स्त्रियाँ सम्मिलित होनेकी मांग कर रही थीं और जब फेरीका परवाना दिखाये बिना, फेरी लगानेपर जेल जाना शुरू किया गया था तब फेरी करनेवालोंकी स्त्रियोंने जेल जानेकी इच्छा प्रकट की थी। किन्तु उस समय विदेशमें स्त्रियोंको जेल भेजना हम सबको अनुचित लगता था। हमें उन्हें जेलमें भेजनेका कारण भी दिखाई नहीं देता था और उस समय मुझमें तो उन्हें जेलमें ले जानेकी हिम्मत भी नहीं थी। फिर हमें ऐसा भी लगता था कि जो कानून मुख्यतः पुरुषोंपर ही लागू होता है, उसे रद करवानेके लिए स्त्रियोंकी आहुति देना पुरुषोंके लिए अशोभनीय है। किन्तु अब एक ऐसी घटना हो गई जिससे स्त्रियोंका विशेष रूपसे अपमान होता था। हमें यह प्रतीत हुआ कि यदि उस अपमानको दूर करने के लिए स्त्रियाँ भी अपनी आहुति दें तो वह अनुचित न होगा।

अध्याय ३९

विवाह विवाह नहीं रहा

एक ऐसी घटना हुई जिसकी कल्पना किसीने भी नहीं की थी, मानो इस रूपमें ईश्वर अदृश्य रूपसे हिन्दुस्तानियोंकी जीतकी सामग्री सँजो रहा था और दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंके अन्यायको और भी स्पष्ट करना चाहता था। हिन्दुस्तानसे बहुतसे विवाहित मनुष्य दक्षिण आफ्रिका आये थे और कुछ देशमें विवाह करके वापिस लौटे थे। हिन्दुस्तानमें सामान्यतः विवाह दर्ज करानेका नियम नहीं है। यहां तो धार्मिक विधि पर्याप्त मानी जाती है। दक्षिण आफ्रिकामें भी हिन्दुस्तानियोंके सम्बन्धमें इसी प्रथाको कायम रखना उचित था। चालीस वर्षसे हिन्दुस्तानी दक्षिण आफ्रिकामें जाकर बस रहे थे और वहीं उनके विभिन्न धर्मोके अनुसार किये गये विवाह कभी अवैध नहीं माने गये थे। किन्तु इस समय एक मुकदमेमे केपके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्लने १४ मार्च, १९१३ को यह निर्णय दिया कि दक्षिण आफ्रिकामे ईसाईधर्मके अनुसार