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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


होता और सत्याग्रहियोंमें शक्ति न होती तो वे इस करकी मंसूखीके लिए सत्याग्रह के शस्त्रका उपयोग करने से विरत हो सकते थे; किन्तु हिन्दुस्तानका अपमान होनेपर उसे सहन करना तो सम्भव नहीं था। इस कारण सत्याग्रहियोंने तीन पौंडी करको लड़ाईमें सम्मिलित करना अपना धर्म समझा, और जब तीन पौंडी करको लड़ाईमें स्थान मिला तब गिरमिटिया हिन्दुस्तानियोंको भी सत्याग्रहमें भाग लेनेका अवसर मिला। पाठकोंको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि लोग अभीतक लड़ाईसे बाहर रखे गये थे; इससे एक ओर लड़ाईका बोझा ओर दूसरी और सैनिकोंकी संख्या बढ़ने की सम्भावना भी हो गई ।

गिरमिटियोंमें अबतक सत्याग्रहकी कोई भी चर्चा नहीं की गई थी; तब उन्हें उसका शिक्षण कैसे दिया जाता ? वे निरक्षर होनेसे 'इंडियन ओपिनियन' अथवा कोई दूसरा अखबार कैसे पढ़ते ? ऐसा होते हुए भी मैंने देखा कि ये गरीब लोग सत्या- ग्रहको ध्यानसे देख रहे थे और जो-कुछ हो रहा था उसे समझते थे। उनमें से कुछको लड़ाईमें सम्मिलित न होनेका दुःख भी होता था। जब वचन-भंग हुआ और तीन पौंडी करको लड़ाई के कारणोंमें सम्मिलित करनेका नोटिस दे दिया गया तब मुझे इस बातका बिलकुल पता नहीं था कि उनमें से कौन-कौन लोग लड़ाईमें सम्मिलित होंगे।

मैंने वचन-भंगकी बात गोखलेको लिखी। उन्हें इससे अत्यन्त दुःख हुआ। मैंने उन्हें लिखा कि आप निश्चिन्त रहें; हम शरीरमें प्राण रहते जूझेंगे और इस करको रद करायेंगे। केवल इतना ही हुआ कि मेरा एक वर्षमें हिन्दुस्तान जाना स्थगित हो गया और कब जाना होगा यह कहना असम्भव हो गया। गोखले तो अंक-शास्त्री थे। उन्होंने मुझसे उन लोगोंके ज्यादासे-ज्यादा और कमसे-कम नाम भेजनेको कहा जो लड़ाईमें भाग ले सकते थे। जहांतक मुझे याद है, मैंने इसपर उन्हें ज्यादासे-ज्यादा पैंसठ या छियासठ और कमसे कम सोलह नाम भेजे थे। मैंने उन्हें यह भी लिखा था कि इतनी छोटीसी संख्या के लिए में हिन्दुस्तानसे आर्थिक सहायताकी अपेक्षा नहीं रखता। मैंने उनसे प्रार्थना की कि वे हमारे सम्बन्धमें चिन्ता न करें और अपने शरीरको अनुचित कष्ट न दें । दक्षिण आफ्रिकासे लौटकर जब वे बम्बई पहुँचे तब उनपर कमजोरी दिखानेके और अन्य कई तरहके आक्षेप किये गये थे। इसकी जानकारी मुझे समाचारपत्रोंसे और अन्य प्रकारसे मिल चुकी थी। इसलिए मैं चाहता था कि वे हमें हिन्दुस्तानसे धन भिजवाने के लिए कोई भी आन्दोलन न करें। किन्तु गोखलेने मुझे यह कड़ा उत्तर दिया, "जैसे आप दक्षिण आफ्रिकामें अपना धर्म समझते हैं, वैसे हिन्दुस्तान में हम भी अपना कुछ धर्म समझते हैं। हमें क्या करना उचित है, " आपको यह नहीं कहने दूंगा। मैंने तो केवल वहाँकी स्थिति जाननी चाही थी; हमारी ओरसे क्या किया जाना चाहिए, इस सम्बन्धमें सलाह नहीं माँगी थी।" इन शब्दोंका मर्म मैं समझ गया। मैंने इस सम्बन्धमें इसके बाद न कोई शब्द कहा और न लिखा ।

१. देखिए खण्ड ११, पृ४ ४५७-८ ।

२. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३९-४० और पृष्ठ १०९-११ ।