पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०९
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

ऐसी बहनोंने भी लड़ाईमें भाग लेनेका आग्रह किया। मैं उनमें से किसीको रोकने में असमर्थ था। वे सब बहनें तमिल थीं। उनके नाम निम्न लिखित हैं:

१. श्रीमती यम्बी नायडू, २. श्रीमती एन० पिल्ले, ३. श्रीमती के० मुरुगेसा पिल्ले, ४. श्रीमती ए० पेरुमल नायडू, ५. श्रीमती पी० के० नायडू, ६. श्रीमती के० चिन्नास्वामी पिल्ले, ७. श्रीमती एन० एस० पिल्ले, ८. श्रीमती आर० ए० मुदलिंगम्, ' ९. श्रीमती भवानीदयाल १०, कुमारी मीनाक्षी पिल्ले और ११. कुमारी बँकुम मुरु- गेसा पिल्ले ।

इनमें से छः बहनोंकी गोदमें दूध-पीते बच्चे थे।

अपराध करके जेल जाना आसान है; किन्तु निर्दोष होते हुए गिरफ्तार होना एक मुश्किल चीज है । अपराधी गिरफ्तार होना नहीं चाहता, इसलिए पुलिस उसका पीछा करती है और उसे गिरफ्तार करती है। स्वेच्छासे और निर्दोष रहते हुए जेल जानेवालेको पुलिस मजबूर होनेपर ही गिरफ्तार करती है। इन बहनोंका पहला प्रयत्न व्यर्थ गया। उन्होंने वेरीनिगिंगसे ऑरेंज फ्री स्टेटकी सीमामें बिना परवाना प्रवेश किया; किन्तु उन्हें किसीने गिरफ्तार नहीं किया। उन्होंने बिना परवाना लिये फेरीकी, किन्तु पुलिसने फिर भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। अब उनके सामने यह समस्या आई कि वे गिरफ्तार कैसे हों। गिरफ्तार होनेके लिए तैयार लोगोंकी संख्या बहुत नहीं थी और जो तैयार थे उनकी गिरफ्तारी आसान न थी ।

अन्तमें हमने जिस रास्तेको अपनानेका विचार किया था उसे काममें लेनेका निश्चय किया और हमारा यह कदम बहुत कारगर निकला। मैंने सोचा था कि मैं अपने फीनिक्समें रहे हुए सब साथियोंकी अन्तिम समयमें आहुति दूंगा। मेरी दृष्टिमें यह अन्तिम त्याग था। फीनिक्समें रहनेवाले मेरे अन्तरंग साथी और सगे-सम्बन्धी थे। मैंने यह खयाल किया था कि अखबार चलानेके लिए आवश्यक लोगोंको और सोलह वर्षसे कम आयुके लड़कों और लड़कियोंको छोड़कर बाकी सबको जेल भेज दूंगा । मेरे पास इससे अधिक त्याग करनेके साधन नहीं थे। मैंने गोखलेको जिन आखिरी सोलह लोगोंके नाम भेजे थे वे इन्हीं लोगोंमें से थे। इस टुकड़ीको ट्रान्सवालमें भेजकर बिना परवाने प्रवेश करनेके अपराधमें गिरफ्तार कराना था। हमें भय था कि यदि इस कार्रवाई की बात जाहिर की जायेगी तो सरकार इन लोगोंको गिरफ्तार न करेगी । इसलिए मैंने यह बात दो-चार मित्रोंके अतिरिक्त अन्य किसीको भी नहीं बताई थी। पुलिस अधिकारी सीमा पार करते समय सदा नाम और पता पूछता था। इस बार यह योजना भी की गई थी कि उसे नाम और पता न बताया जाये । अधिकारीको नाम और पता न बताना भी अपराध था। भय था कि नाम और पता बतानेपर पुलिस यह जान लेगी कि वे मेरे सगे-सम्बन्धी हैं तो उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी। इसलिए नाम और पता न बतानेका विचार किया गया था। इस कदमके साथ-साथ जो बहतें ट्रान्सवालमें गिरफ्तार होनेका प्रयत्न कर रही थीं उन्हें नेटालमें प्रवेश करना था। जैसे नेटालसे ट्रान्सवालमें बिना परवाना प्रवेश करना अपराध था, वसे ही ट्रान्स-

१. खण्ड १२, पृष्ठ २३७ की पादटिप्पणीमें इन महिलाओं में श्रीमती रामलिंगमूका नाम दिया गया है।

२९-१४