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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वालसे नेटालमें बिना परवाना प्रवेश करना अपराध था। इसलिए यह तय किया गया कि इन बह्नोंको यदि पुलिस गिरफ्तार करे तो वे नेटालमें गिरफ्तार हो जायें और यदि गिरफ्तार न करे तो वे नेटालमें कोयला खानोंके केन्द्र न्यू कैंसिलमे जाकर मजदूरोंसे हड़ताल करनेका आग्रह करें। इन बहनोंकी मातृभाषा तमिल थी और उन्हें थोड़ी-बहुत हिन्दुस्तानी भी आती थी। मजदूरोंमें बहुत बड़ा हिस्सा मद्रास अहातेके तमिल और तेलुगू भाषी प्रदेशका था और उत्तर भारतके लोगों की संख्या भी खासी थी। मैंने अपने मनमें व्यूह-रचना की थी कि यदि मजदूर इन बहनोंकी प्रार्थना मानकर काम छोड़ देंगे तो सरकार मजदूरोंके साथ-साथ उनको भी गिरफ्तार किये बिना न रहेगी और इससे मजदूरोंमें उत्साह बढ़ना भी बहुत सम्भव है। मैंने यह व्यूह रचना ट्रान्सवालकी उन बहनोंको पूरी तरह समझा भी दी थी ।

फिर मैं फीनिक्समें गया। मैंने फीनिक्समें सबके साथ बैठकर बात की। मुझे पहले तो फोनिक्समें रहनेवाली बहनोंसे सलाह करनी थी। बहनोंको जेल भेजनेका कदम बहुत खतरनाक है, यह मैं जानता था । फोनिक्समें रहनेवाली बहुत-सी बहनें गुजराती थीं; इसलिए वे ट्रान्सवालकी उन बहनोंकी तरह जिनका जिक्र में ऊपर कर चुका हूँ, कसी हुई और अनुभवी नहीं मानी जा सकती थीं। फिर एक बात यह भी थी कि इनमें से बहुत-सी मेरी रिश्तेदार थीं, इसलिए यह हो सकता था कि वे केवल मेरा लिहाज करके जेल जानेका विचार कर लेती और पीछे संकटके समय डरकर अथवा जेलमें घबराकर माफी माँगतीं। यदि वे ऐसा करतीं तो उससे मुझे आघात पहुँचता और लड़ाई बिलकुल कमजोर पड़ जाती। मैंने निश्चय किया था कि मैं अपनी पत्नीको इसके लिए न कहूँगा, क्योंकि वह 'न' तो कर ही नहीं सकती थी और यदि 'हाँ' करती तो वह किस हदतक आन्तरिक है यह कहना मुश्किल होता । ऐसे जोखिमके काममें पत्नी अपने आप कदम उठाये तो ही उसे पतिको स्वीकार करना चाहिए। और यदि वह कोई कदम न उठाये तो पतिको उससे तनिक भी दुःखी नहीं होना चाहिए। मैं इस बातको समझता था इसलिए मैंने उससे इस बारेमें कोई बात न करनेका निश्चय किया था। मैंने दूसरी बहनोंसे बातचीत की। वे ट्रान्सवालकी बहनोंकी तरह तत्काल तैयार हो गईं। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि उन्हें चाहे जितने कष्ट सहने पड़ें फिर भी वे अपनी कंदकी अवधि पूरी करेंगी। इस पूरी बातचीतका सार मेरी पत्नीको भी मालूम हो गया, अतः उसने मुझसे कहा : 'आप इस बारेमें मुझसे बात नहीं कर रहे हैं, इससे मुझे दुःख होता है। मुझमें ऐसी क्या त्रुटि है जिससे मैं जेल नहीं जा सकती ? आपने इन बहनोंको जो रास्ता अपनाने की सलाह दी है मुझे भी वही रास्ता अपनाना है।" मैंने कहा: "मेरा विचार तुम्हें दुःखी करनेका हो ही नहीं सकता। इसमें अविश्वास करनेकी बात भी नहीं है। मैं तो तुम्हारे जेल जाने से प्रसन्न ही होऊँगा। किन्तु तुम मेरे कहनेसे जेल गई हो, इसकी कल्पना भी मुझे सह्य नहीं होती। यह कार्य सबको अपने अन्तर-बलसे ही करना चाहिए। यदि तुम मेरे कहनेके कारण स्वभावसे मेरी बात रखनेके लिए गिर- फ्तार हो जाओ, फिर अदालतमें खड़ी होते ही कॉप जाओ और हिम्मत हार बैठो