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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

कुछ इस प्रकारकी बातें हुईं। पूरी बातचीत तो मुझे इस समय याद नहीं आ सकती। मुझे जो मुद्दे याद रह गये हैं वे मैंने यहाँ संक्षेपमें दे दिये हैं। मुझे यह दिखाई दे गया कि मालिकोंको अपना मामला लंगड़ा लगा है और वे सरकारसे सलाह कर रहे थे ।

डर्बन जाते हुए और वहाँसे आते हुए मैंने देखा कि रेलके गार्डो वगैरापर इस हड़तालका और लोगोंकी शान्तिका बहुत अच्छा असर पड़ा है। मैं तो तीसरे दर्जेमें यात्रा कर रहा था। किन्तु वहाँ भी गार्ड और अन्य कर्मचारी मुझे घेर लेते, बड़ी उत्सुकतासे सारी बातें पूछते और सभी हमारी जीतकी कामना करते । वे मुझे अनेक प्रकारकी छोटी-मोटी सुविधाएँ देते। मैं उनसे अपना सम्बन्ध निर्मल रखता था। मैं उन्हें किसी भी सुविधाके लिए कोई लालच नहीं देता था। यदि वे अपनी इच्छासे ही भलमनसाहत दिखाते तो वह मुझे अच्छी लगती थी, किन्तु मैं उनकी भलमन- साहत खरीदनेका प्रयत्न बिलकुल नहीं करता था। गरीब, अपढ़ और नासमझ मजदूर इतनी दृढ़ता दिखा सकते हैं, इससे उनको आश्चर्य होता था । किन्तु दृढ़ता और वीरता ऐसे गुण हैं जिनकी छाप विरोधीपर पड़े बिना नहीं रहती।

मैं न्यूकैसिल लौट आया। लोगोंकी धारा तो बहती ही आ रही थी। मैंने उनको सब बातें बारीकी से समझाईं। मैंने उनसे यह कहा कि यदि कोई वापस जाना चाहे तो जा सकता है। यह भी कह दिया कि मालिकोंने धमकी दी है; भविष्य में जो जोखिमें आ सकती थीं उनका वर्णन भी कर दिया। मैंने कहा कि यह लड़ाई कब खत्म होगी; मैं नहीं कह सकता। मैंने उन्हें जेलके कष्ट बताये, किन्तु लोग फिर भी अडिग रहे। उन्होंने निर्भयतासे उत्तर दिया, "जबतक आप लड़नेके लिए तैयार रहेंगे तबतक हम हार न मानेंगे। हम दुःखोंको समझते हैं। आप हमारी चिन्ता न करें ।

अब तो हमें कूच करना ही बाकी रहा था। मैंने एक दिन शामके वक्त उन लोगोंसे कह दिया कि कल (२८ अक्तूबर, १९१३ को) सुबह उठते ही कूच करना है। कूचमें जिन नियमोंका पालन करना था वे मैंने समझा दिये । पाँच-छ: हजार लोगोंकी भीड़को सँभालना कोई मामूली बात नहीं थी। मैंने उनकी गिनती तो की ही नहीं थी। मैंने उनके नाम और पते भी नहीं पूछे थे । जो रह गये सो रह गये, बस यही हिसाब था । हरएक आदमीको तीन पाव डबल रोटी और आधी छटाँक चीनी से ज्यादा खाना देनेकी शक्ति नहीं थी। मैंने उन्हें कह दिया था कि रास्तेमें हिन्दुस्तानी व्यापारी इससे ज्यादा कुछ दे देंगे तो ले लेंगे। किन्तु उन्हें सामान्यतः रोटी और चीनीसे ही सन्तोष करना होगा। मेरा बोअर युद्ध और हब्शियोंके विद्रोह- का अनुभव बहुत काम आया। यह शर्त तो थी ही कि लोग अपने पास जरूरतसे ज्यादा कपड़ा हरगिज न रखें। वे रास्ते में किसीका माल-असबाब न उठायें, अधिकारी अथवा कोई अंग्रेज मिले और उनसे गालीगलौच या मारपीट करे तो वे उसे सहन

१. हड़तालके सम्बन्ध में नेटाल मर्क्युरीके प्रतिनिधिसे हुई बातचीत के लिए देखिए खण्ड १२, पृष्ठ २४५-६ ।