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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अध्याय ४२
खान - मलिकोके पास और उसके बाद

खान-मालिकों निमन्त्रणपर मैं उनसे मिलने डर्बन गया। मैंने समझा कि मालिकों- पर कुछ असर हुआ है। फिर भी मेरा खयाल यह नहीं था कि इससे हमें कुछ मिलेगा किन्तु सत्याग्रहीकी नम्रताकी सीमा नहीं होती। वह समझौतेका कोई भी अवसर हाथसे नहीं जाने देता। इस कारण कोई उसे डरपोक समझे तो वह उसकी परवाह नहीं करता। जिसके हृदयमें विश्वास है और उस विश्वाससे उत्पन्न बल है, उसे दूसरोंको की हुई अवहेलनासे दुःख नहीं होता। वह अपने अन्तर्बलका भरोसा रखता है। इसलिए वह सबके प्रति नम्र रहता हुआ जगतका लोकमत बनाता है। और उसे अपने कार्यकी ओर आकर्षित करता है ।

इसलिए मुझे मालिकोंका यह निमन्त्रण स्वागत करने योग्य लगा। मैं उनके पास गया। मैंने देखा कि हवामें गरमी है। मुझसे स्थिति समझनेके बजाय उनके प्रतिनिधिने मुझसे जिरह करना शुरू किया। मैंने उसे उचित उत्तर दिया।

मैंने उससे कहा, "यह हड़ताल खतम कराना आपके हाथमें है। उनकी ओरसे कहा गया, 'हम अधिकारी नहीं है । "

मैने कहा, 'आप अधिकारी न होनेपर भी बहुत कुछ कर सकते हैं। आप मजदूरोंकी ओरसे मुकदमा लड़ सकते हैं। आप सरकारसे तीन पौंडी कर रद करनेकी माँग करें तो मैं नहीं मानता कि वह उसे अस्वीकार करेगी। आप दूसरों की राय भी इसके पक्षमें बना सकते हैं। " " किन्तु सरकारके लगाये हुए करसे हड़तालका क्या सम्बन्ध है ?

"मालिक मजदूरोंको दुःख दें तो आप उससे नियमानुसार प्रार्थना करें । " "मजदूरोंके पास हड़ताल करनेके सिवा कोई दूसरा उपाय मुझे नहीं दिखाई देता । तीन पौंडका कर भी मालिकोंकी खातिर ही लगाया गया है। मालिक मजदूरों- से मजदूरी कराना चाहते हैं, किन्तु उन्हें स्वतन्त्रता देना नहीं चाहते। इसलिए मैं इस करको रद करानेके लिए मजदूरोंका हड़ताल करना अनीति पूर्ण या मालिकोंके प्रति अन्याय नहीं मानता।

“तब आप मजदूरोंसे कामपर वापिस जानेके लिए नहीं कहेंगे ? "

“मैं लाचार हूँ।" 'आप इसका परिणाम जानते हैं ? '

“ मैं होशमें हूँ; मुझे अपनी जिम्मेदारीका पूरा खयाल है । "

"बेशक, इसमें आपका जाता ही क्या है ? किन्तु इससे इन गुमराह मजदूरोंका जो नुकसान होगा क्या आप उसे पूरा करेंगे ? "

“मजदूरोंने सोच-समझकर और नुकसानको खयालमें रखकर यह हड़ताल की है। आत्मसम्मानकी हानिकी अपेक्षा दूसरी बड़ी हानि मेरे खयालमें नहीं आ सकती। मजदूरोंने यह बात समझ ली है, इसका मुझे सन्तोष है। "