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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

याद आते हैं; इनके सिवा दूसरे लोग भी थे। उन सभीने बहुत मेहनत की और सहायता दी ।

खानेमें दाल-चावल दिये जाते थे। साग-सब्जियाँ खूब आ गई थीं, किन्तु उनको अलग पकानेकी स्थिति नहीं थी। इसलिए वे दालमें ही डाल दी जाती थीं। उन्हें अलग पकानेके लिए न समय था और न उतने बरतन । चौका चौबीसों घंटे चलता; क्योंकि भूखे-प्यासे लोग कभी भी आ जाते थे। न्यूकैसिलमें किसीको रहना था ही नहीं। रास्ता सबको मालूम था, इसलिए सब खानोंसे निकलकर सीधे चार्ल्सटाउन पहुँचते ।

मैं जब लोगोंकी धीरता और सहनशीलताकी बात सोचता हूँ तब मुझे ईश्वर- की महिमाकी प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। खाना बनानेवालोंका मुखिया में ही था। कभी दालमें ज्यादा पानी पड़ जाता तो कभी वह कच्ची रह जाती । कभी शाक न गल पाता तो कभी भात ही कच्चा रह जाता। ऐसे खानेको हँसते-हँसते खानेवाले लोग मैंने संसारमें बहुत नहीं देखे। इसके विपरीत दक्षिण आफ्रिकाकी जेलोंमें मुझे यह भी अनुभव हुआ कि जब कभी खाना कम मिलता, कम पका मिलता या देरसे मिलता तब अच्छे पढ़े-लिखे माने जानेवाले लोगोंका पारा भी गरम हो जाता ।

खाना पकानेसे खाना परोसनेका काम ज्यादा मुश्किल था; और वह तो मेरे ही हाथमें था । उसके कच्चे-पक्केका जवाब तो मुझे ही देना होता था । खाना कम होता और लोग ज्यादा हो जाते तब खाना कम देकर लोगोंको सन्तोष देनेका काम भी मेरे ही जिम्मे था । बहनें कम खाना मिलनेपर एक पल मुझे कड़ी निगाहसे देखतीं और फिर कारण समझकर हँसती चली जातीं । वह दृश्य में जीवनभर नहीं भूल सकता। मैं उन्हें कह देता, "मैं मजबूर हो गया हूँ। मेरे पास पका हुआ खाना कम है और खानेवाले लोग ज्यादा है; इसलिए मुझे हिसाबसे ही देना है।" वे यह बात समझ जातीं तो 'सन्तोषम्' कहकर हँसती हुई चल पड़तीं।

ये सब तो रहे मीठे संस्मरण । कड़वे संस्मरण ये थे, लोग घड़ीभर फुरसत मिलती तो आपसमें लड़ते-झगड़ते। इससे भी बुरी बात थी व्यभिचारकी घटनाएँ होना । स्त्रियों और पुरुषोंको साथ-साथ रखना पड़ता था और भीड़ भी बहुत ज्यादा थी । व्यभिचारको लाज-शर्म तो हो ही कैसे सकती है? मैं ऐसी घटना होते ही वहाँ जा पहुँचता । अपराधी लज्जित होते । मैं उन्हें अलग-अलग कर देता । कौन कह सकता है, कुछ ऐसी घटनाएँ भी हुई होंगी जिनका मुझे पता नहीं चला। इस सम्ब- न्धमें अधिक कुछ कहना व्यर्थ है। ये उदाहरण यह बतानेके लिए दिये हैं कि सब बातें बिलकुल सीधी ही नहीं थीं और ऐसी घटनाएँ होनेपर भी किसीने मेरे प्रति उद्धतता नहीं दिखाई। मैंने यह बात बहुत अवसरोंपर अनुभव की है कि जंगली जैसे लोग भी जिन्हें नीति-अनीतिका अधिक ज्ञान नहीं होता, अच्छे वातावरणमें किस तरह सीधे चलते हैं और यही जानना अधिक आवश्यक और लाभदायक है।