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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अध्याय ४३

ट्रान्सवालमें प्रवेश- १

अब हम नवम्बर १९१३ के शुरूम पहुँच गये हैं। कूचकी बात कहने से पहले मैं दो घटनाओंका उल्लेख कर दूँ । न्यूकॅसिलमें द्रविड़ बहनोंके जेल जानेसे बाई फातिमा मेहताबसे न रहा गया, इसलिए वे भी अपनी माँ हनीफाबाई और सात सालके बच्चेके साथ जेल जानेके लिए चल पड़ी। माँ और बेटी तो गिरफ्तार कर ली गईं; किन्तु सरकारने बच्चेको गिरफ्तार करनेसे साफ इनकार कर दिया। पुलिसने बाई फातिमाकी अँगुलियोंकी छाप लेनेकी भी कोशिश की। किन्तु वे निडर रहीं और उन्होंने अपनी अँगुलियोंकी छाप नहीं दी ।

उस समय हड़ताल पूरे जोरसे चल रही थी। उसमें पुरुषोंकी तरह स्त्रियाँ भी कूच कर रही थीं। इनमें से दो स्त्रियोंकी गोदमें बच्चे थे। एक बच्चेको कूचमें सर्दी लग गई और वह जाता रहा। दूसरा बच्चा एक नालेको लाँघते समय अपनी माँकी गोद में से गिर गया और धारामें डूबकर मर गया। किन्तु बच्चों की माँ इससे भी निराश नहीं हुईं। दोनोंने अपना कूच जारी रखा। एकने कहा : हम मरे हुओं- का शोक करके क्या करेंगी? वे क्या वापिस आयेंगे ? जीवितोंकी सेवा करना हमारा धर्म है।" ऐसी शान्तिपूर्ण वीरता, ईश्वरके प्रति आस्था और ज्ञान-गरिमाके उदाहरण मैंने गरीबोंमें बहुत बार देखे हैं ।

चार्ल्सटाउनमें स्त्री और पुरुष ऐसी ही दृढ़तासे अपने कठिन धर्मका पालन कर रहे थे। किन्तु हम चार्ल्सटाउनमें शान्तिकी खोजमे थोड़े ही गये थे। जिसे शान्ति चाहिए वह उसे अपने अन्तरमें प्राप्त करे। बाहर तो जहाँ देखिए वहीं ऐसी ही पट्टियाँ लगी होती हैं, "यहाँ शान्ति नहीं मिल सकती।" किन्तु इस अशान्तिमें मीराबाई जैसी भक्त नारी हँसती हुई विषका प्याला मुँहसे लगाती है और सुकरात अपनी अँवेरी कोठरीमें अकेला बैठा विषका पात्र अपने हाथमे लेकर अपने मित्रको गूढ़ ज्ञान सिखाता है और हमें उपदेश देता है: “जिसे शान्ति चाहिए वह उसे अपने हृदयमें खोजे । "

हृदयकी ऐसी शान्तिमें सत्याग्रहियोंकी टुकड़ीका सुबह क्या होगा, यह चिन्ता छोड़कर छावनी डाले पड़ी थी ।

मैंने सरकारको पत्र लिखा था कि हम ट्रान्सवालमें बस जाने के उद्देश्यसे प्रवेश नहीं करना चाहते। हमारा प्रवेश सरकारके वचनभंगके विरोधमें की गई अमली पुकार है; वह हमारे आत्मसम्मानके भंगसे उत्पन्न दुःखका शुद्ध लक्षण है। यदि वह हमें यहाँ चार्ल्सटाउनमें गिरफ्तार कर ले तो हम निश्चिन्त हो जायेंगे। यदि गिरफ्तार

१. अंग्रेजी अनुवादमें यहाँ यह वाक्य भी है: अन्तमें (१३ अक्तूबर १९१३ को) माँ-बेटीको तीन- तीन महीनेकी कैदको सजा दे दी गई ।

२. अंग्रेजी में यहाँ ये शब्द भी हैं :... स्त्रियाँ भी न्यूकैसिल और चाल्र्ल्सटाउनके बीच।

३. पत्र उपलब्ध नहीं है।

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