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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

बल्कि राज्यसत्ता अपने हाथमें लेना था । जनरल स्मट्ससे मेरी पहली भेंट बहुत ही थोड़ी देरतक हुई; किन्तु मैंने देखा कि जनरल स्मट्सकी जैसी स्थिति पहले अर्थात् हमारा कूच आरम्भ होनेके समय थी वैसी आज न थी । पाठकोंको याद होगा कि उस समय उन्होंने मुझसे बात करनेसे भी इनकार कर दिया था। सत्याग्रहकी धमकी तो जैसी उस समय थी वैसी इस समय भी थी; फिर भी उस समय उन्होंने समझौतेकी बात करने से इनकार किया था। किन्तु वे इस समय मुझसे सलाह करनेके लिए तैयार थे।

हिन्दुस्तानी कीमकी माँग तो यह थी कि आयोगमें हिन्दुस्तानियोंकी ओरसे भी कोई प्रतिनिधि नियुक्त किया जाना चाहिए; किन्तु जनरल स्मट्स इस सम्बन्धमें अपनी बातपर दृढ़ थे। उन्होंने कहा, "सदस्यों की संख्या में वृद्धि नहीं की जा सकती, उससे सरकारकी प्रतिष्ठा घटेगी और मैं जो सुधार करना चाहता हूँ वे नहीं कर सकूँगा । आपको जानना चाहिए कि श्री एसेलेन हमारे आदमी हैं और सुधार करनेके सम्बन्धमें वे सरकारके विरुद्ध नहीं जायेंगे, बल्कि अनुकूल रहेंगे। कर्नल वाइली नेटालके प्रति- ष्ठित पुरुष हैं और आप लोगोंके विरुद्ध भी माने जा सकते हैं । अतः यदि वे भी तीन पौंडी करको रद करनेके सम्बन्धमें सहमत हो जायेंगे तो उससे हमारा काम सरल हो जायेगा । हमारी अपनी झंझटें इतनी है कि हमें एक घड़ीकी भी फुरसत नहीं, इसलिए हम चाहते हैं कि आपका सवाल तय हो जाये । आप जो कुछ माँगते हैं वह दे देनेका हमने निश्चय कर लिया किन्तु आयोगकी सिफारिशके बिना वह नहीं दिया जा सकता। मैं आपकी स्थिति भी समझ सकता हूँ। आपने प्रतिज्ञा की है कि जबतक आयोगमें कोई आदमी आपकी ओरसे नियुक्त न किया जायेगा तबतक आप उसके सामने गवाही नहीं देंगे। आप गवाही भले ही न दें, किन्तु जो गवाही देने आये उसे रोकनेका आन्दोलन न करें और सत्याग्रह स्थगित रखें। मेरा विश्वास है कि इससे आपको लाभ ही होगा और मुझे शान्ति मिलेगी। आप लोगोंकी शिकायत है कि हड़तालियोंपर अत्याचार किया गया है; किन्तु आप इस बातको सिद्ध न कर सकेंगे, क्योंकि आप तो गवाही नहीं देंगे। इस सम्बन्धमें आपको स्वयं सोचना- विचारना है।"

जनरल स्मट्सने इस प्रकारके विचार प्रकट किये। मुझे तो वे कुल मिलाकर अनुकूल ही लगे। हमने सिपाहियों और जेलके दारोगाओंके जुल्मोंकी बहुत शिकायतें की थीं; किन्तु अब हमारे सामने यह धर्म-संकट था कि आयोगका बहिष्कार करने से हमें उन्हें सच साबित करनेका मौका नहीं मिलेगा। हम लोगों में इस सम्बन्धमें मतभेद था। एक दलका विचार था कि हिन्दुस्तानियोंने सिपाहियोंके विरुद्ध जो आरोप लगाये हैं उन्हें जरूर साबित किया जाये, इसलिए उसने सुझाव दिया था कि यदि आयोगके सम्मुख गवाही न दी जा सके तो कौम जिन्हें अपराधी मानती है उनके विरुद्ध जो शिकायतें हैं उन्हें वह इस रूपमें प्रकाशित कर दे कि जिनपर वे आरोप लगाये गये हैं वे चाहें तो मानहानिका दावा कर सकें। मैं उसके इस

१. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३१८-२१ ।