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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विचारके विरुद्ध था। आयोगका निर्णय सरकारके विरुद्ध होने की सम्भावना बहुत कम थी । मानहानिके दावेके योग्य तथ्य प्रकाशित करनेसे कौम अवश्य ही बहुत बड़ी झंझटमें पड़ती और उसका फल इतना ही होता कि हमें अपनी शिकायतें सिद्ध करनेका सन्तोष मिल जाता । मैं वकील होनेके कारण यह जानता था कि मानहानिकी बातोंको सिद्ध करना कितना कठिन होता है। किन्तु मेरे पास सबसे ज्यादा वजनी दलील तो यह थी कि सत्याग्रहियोंको तो कष्ट झेलने ही थे । वे सत्याग्रह आरम्भ करने से पहले जानते थे कि उन्हें मृत्यु पर्यंत कष्ट सहन करने पड़ेंगे, और वे उन्हें सहनेके लिए तैयार भी थे। इसलिए उन्हें कष्ट सहने पड़े हैं, यह सिद्ध करना कोई जरूरी नहीं था। बदला लेनेकी वृत्ति सत्याग्रहियोंमें होनी ही नहीं चाहिए। इसीलिए जहाँ अपने कष्ट सिद्ध करनेमें उन्हें असामान्य कठिनाई हो वहाँ उनके लिए ठीक मार्ग यही माना जायेगा कि वे शान्त रहें। सत्याग्रहीको तो मूल वस्तुके लिए ही लड़ना पड़ता है। यह मूल वस्तु थी ऊपर बताये गये कानून । जब उन कानूनोंके रद किये जाने अथवा उनमें उचित परिवर्तन किये जानेकी पूरी सम्भावना हो तब वह दूसरी झंझटोंमें न पड़े। फिर सत्याग्रहीका मौन उसकी कानूनके विरुद्ध की गई लड़ाईमें समझौता होनेके समय सहायक ही होगा। मैं इस तरहके तर्कोंसे विरोधी पक्षके बहुत बड़े भागको समझा सका। अन्त में कष्टोंकी शिकायतों को कानूनी तौरपर साबित करने की बातको छोड़ देनेका फैसला किया गया ।

अध्याय ४९

पत्रोंका आदान-प्रदान

जनरल स्मट्स और मेरे बीच प्राथमिक समझौतेके सम्बन्धमें पत्र व्यवहार' हुआ । मेरे पत्रका आशय यह था :

“मैंने आपको बताया कि हमने जो प्रतिज्ञा ली है उसके कारण हमारे .लिए आयोगके कार्यमें सहायता देना सम्भव नहीं। आप इस प्रतिज्ञाको समझ सकते हैं और उसकी कद्र भी करते हैं। आप कौमके साथ सलाह करनेके सिद्धान्तको स्वीकार करते हैं, इसलिए मैं अपने देशभाइयोंको यह सलाह दे सकता हूँ कि वे गवाहियाँ देनेके अतिरिक्त आयोगके अन्य सब कार्योंमें सहायता दें और अन्ततः उसके किसी काममें बाधा न डालें। इसके अतिरिक्त में यह सलाह भी दे सकूँगा कि जबतक आयोगकी कार्रवाई चालू है तबतक और जबतक नया कानून नहीं बनता तबतक सत्याग्रह भी स्थगित रखा जाये जिससे

१. पत्र-व्यवहारके लिए देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ३२१-२३ ।

२. अंग्रेजी में यह इस प्रकार है:

जनरल स्मट्स और मैंने एक दूसरेको पत्र लिखे जिससे आपसी भेंटोंके फलस्वरूप हम जिस समझौते तक पहुँचे थे उसे लिखित रूप दे दिया गया । २१ जनवरी १९१४ को लिखे नये पत्रका सारांश इस प्रकार दिया जा सकता है।