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दक्षिण आफ्रिका के सत्याग्रह का इतिहास

प्रस्तावना

(१)

दक्षिण आफ्रिका में हिन्दुस्तानियों की सत्याग्रह की लड़ाई आठ बरस चली। सत्याग्रह शब्द का अनुसन्धान और प्रयोग इसी लड़ाई के सम्बन्ध में किया गया था। बहुत समय से मेरी यह इच्छा थी कि इस लड़ाई का इतिहास में स्वयं लिखू। उसका कुछ अंश तो लिख भी मैं ही सकता हूँ, क्योंकि कौन-सा कार्य किस उद्देश्य से किया गया था यह बात तो संघर्ष का संचालक ही जान सकता है। फिर बड़े पैमाने पर राजनीतिक क्षेत्र में यह प्रयोग पहला ही था, इसलिए इस सत्याग्रह के सिद्धान्त का विकास किस तरह हुआ, यह जान सकना किसी भी समय आवश्यक माना जायेगा।

किन्तु इस समय तो हिन्दुस्तान में सत्याग्रह के लिए विशाल क्षेत्र है। यहाँ इसका अनिवार्य क्रम वीरम गांव की चुंगी की छोटी-सी लड़ाई से आरम्भ हुआ है।

वीरम गाँव की चुंगी की लड़ाई में निमित्त थे बढवान के साधुचरित्र परोपकारी दर्जी, भाई मोतीलाल। बात १९१५ की है। मैं विलायत से लौटकर आया था और काठियावाड़ जा रहा था। मैं तीसरे दर्जे के डिब्बे में बैठा था। मोतीलाल बढवान स्टेशन पर अपने साथियों के छोटे से दल को लेकर आये थे। उन्होंने वीरम गाँव के सम्बन्ध में कुछ बातें बताई और फिर मुझसे कहा:

'आप इस दुःख को दूर करने का उपाय करें। आपने काठियावाड़ में जन्म लिया है, उसे आप सार्थक करें।' उनकी आँखों में दृढ़ता और करुणा दोनों थीं। मैंने पूछा : आप जेल जाने के लिए तैयार हैं ? उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया : हम फांसी पर चढ़ने के लिए भी तैयार है।

१. गांधीजीने दक्षिण आफ्रिकाना सत्याग्रहनो इतिहास २६ नवम्बर, १९२३ को जब वे यरवदा जेल में थे, लिखना शुरू किया। देखिए खण्ड २३ । ५ फरवरी, १९२४ को रिहा होने के समय तक उन्होंने प्रथम ३० अध्याय लिख डाले थे। यह इतिहास लेखमाला के रूप में १३ अप्रैल, १९२४ से २२ नवम्बर १९२५ तक नवजीवन में प्रकाशित हुआ। पुस्तक के रूप में इसके दो खण्ड क्रमशः १९२४ और १९२५ में छपे। वालजी देसाई द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद का प्रथम संस्करण अपेक्षित संशोधनों के साथ (देखिए प्राक्कथन) एस० गणेशन, मद्रास ने १९२८ में और द्वितीय और तृतीय संस्करण नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद ने १९५० और १९६१ में प्रकाशित किया।

यह अनुवाद मूल गुजराती पाठ और अंग्रेजी पाठ, जैसा कि वह नवजीवन प्रकाशन मन्दिर के तृतीय संस्करण में उपलब्ध है, के मिलान के बाद आवश्यक संशोधनों के साथ किया गया है।

२. काठियावाड़ से ब्रिटिश भारत को हद में आने वाली कुछ वस्तुओंपर वीरम गाँव की सीमापर चुंगी ली जाती थी। नवम्बर १९१० में इसे रद्द कर दिया गया । देखिए खण्ड १३ व १४ तथा आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ३।

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