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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने कहा : मेरे लिए तो आप जेल जायें इतना ही काफी है। किन्तु यह ध्यान रखें कि वचनभंग न हो।

मोतीलालन कहा: इसे तो अनुभव सिद्ध करेगा। मैने राजकोट पहुँचकर इस सम्बन्ध में अधिक विगत प्राप्त की और सरकार से पत्र-व्यवहार आरम्भ किया। मैंने बगसरा और अन्य स्थानों में भाषण देते हुए लोगों को यह सलाह दी कि यदि वीरम गाँव की चुंगी के सम्बन्ध में सत्याग्रह करना पड़े तो वे उसके लिए तैयार रहें। मेरे इन भाषणों की रिपोर्ट सरकार की वफादार खुफिया पुलिस ने सरकारी दफ्तर में दी। रिपोर्ट पहुँचाने वालों ने इस तरह सरकार की सेवा के साथ-साथ अनजाने राष्ट्र को भी सेवा की। अन्त में लॉर्ड चैम्सफोर्ड से इस सम्बन्ध में बातचीत हुई, उसमें उन्होंने चुंगी को रद करने का वचन दिया और उसको पूरा किया। मैं जानता हूँ कि इस सम्बन्ध में दूसरे लोगों ने भी उद्योग किया था; किन्तु मेरा दृढ़ मत है कि इस प्रश्न को लेकर सत्याग्रह किये जाने की सम्भावना होने से ही चुंगी रद की गई थी।

वीरम गाँव की चुंगी के बाद आया गिरमिट का कानून। इस कानून को रद्द करवाने के लिए बहुत उद्योग किया गया था। इस बात को लेकर खासा सार्वजनिक आन्दोलन भी किया गया था। बम्बई को सभा में गिरमिट प्रथा को रद्द करने की तारीख ३१ जुलाई, १९१७ निश्चित की गई थी। यह तारीख कैसे निश्चित की गई थी इसका इतिहास यहाँ नहीं दिया जा सकता। इस लड़ाई के सम्बन्ध में पहले बहनों का एक शिष्टमण्डल वाइसराय से मिलने गया था। इस सम्बन्ध में खास कोशिश किसने की थी मैं यहाँ यह लिखे बिना नहीं रह सकता । विशेष प्रयत्न इसमें चिरस्मरणीय बहन जाईजी पेटिट ने किया था। इस लड़ाई में भी सत्याग्रह की तैयारी करने से ही जीत मिल गई थी। किन्तु इस सम्बन्ध में सार्वजनिक आन्दोलन करना जरूरी हुआ था, यह अन्तर याद रखने योग्य है। गिरमिट प्रथा का बन्द किया जाना वीरम गाँव को चंगी रद्द करने की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था। वाइसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने रौलट कानून बनाने के बाद भूलें करने में कोई कमी नहीं की। फिर भी वे एक समझदार वाइसराय थे, यह मुझे आज भी लगता है। किन्तु अन्ततक सिविल सर्विस के स्थायी अधिकारियों के पंजे से कौन वाइसराय बचा रह सकता है?

तीसरी लड़ाई थी चम्पारन की। इसका व्यौरेवार इतिहास राजेन्द्रबाबू ने लिखा है। इसमें सत्याग्रह करना पड़ा। यहाँ केवल तैयारी करना ही काफी नहीं रहा क्योंकि यहाँ विरोधी पक्ष का स्वार्थ इतना बड़ा था! लोगों ने चम्पारन में कितनी शान्ति रखी, यह बात ध्यान देने योग्य है। सभी नेताओं ने मनसा, वाचा, कर्मणा पूरी शान्ति रखी,


१. देखिए खण्ड १३ ।

२. १८ मार्च, १९१९ को पारित । देखिए खण्ड १५, पृष्ठ ११३-१२१ और खण्ड १७, पृष्ठ १५५-१७०।

३. देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय १२; तथा खण्ड १३ ।