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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

किन्तु मैंने उनकी माँग स्वीकार नहीं की, इसलिए सत्याग्रहकी लड़ाईमें ये बातें एक मुद्दे के रूपमें शामिल नहीं की गईं। फिर भी इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकारको इन विषयोंमें कभी विचार करके राहत देनी होगी। जबतक यहाँ बसे हुए हिन्दुस्तानियोंको नागरिकताके पूरे अधिकार नहीं दिये जाते तबतक उन्हें इससे पूरा सन्तोष होनेकी आशा नहीं की जा सकती। मैने अपने भाइयोंसे कहा है कि उन्हें धीरज रखना चाहिए और प्रत्येक उचित साधन काममं लेकर लोकमत इस तरहका बनाना चाहिए कि सरकार इस पत्र- व्यवहारमें बताई गई शर्तोंसे भी आगे जा सके। मैं आशा करता हूँ कि दक्षिण आफ्रिकाके गोरे जब यह समझ जायेंगे कि हिन्दुस्तानसे गिरमिटियोंका आना बन्द हो गया है और दक्षिण आफ्रिकामें नये प्रवासी कानूनके कारण स्वतन्त्र हिन्दुस्तानियोंका आना भी लगभग रुक गया है और यह देख लेंगे कि हिन्दु- स्तानियोंकी आकांक्षा यहाँके राजकाजमें किसी तरहका दखल देनेकी नहीं है तब वे हिन्दुस्तानियोंको मेरे बताये अधिकार अवश्य दे देंगे और तब उनको यह स्पष्ट अनुभव होगा कि मैंने जिन अधिकारोंका उल्लेख किया है वे हिन्दु- स्तानियोंको अवश्य दिये जाने चाहिए और यह न्यायसंगत है। इस बीच इस प्रश्नको तय करने में पिछले कुछ महीनोंसे सरकारने जो उदार नीति अपनाई है। यदि वही नीति जैसा कि आपने अपने पत्र में बताया है, मौजूदा कानूनोंको अमलमें लानेमें चालू रखी तो मुझे विश्वास है कि हिन्दुस्तानी कौम समस्त संघमें कुछ शान्तिपूर्वक रह सकेगी और सरकारके लिए परेशानीका कोई कारण उत्पन्न नहीं करेगी।

उपसंहार

इस प्रकार आठ वर्षके अन्तम सत्याग्रहकी यह महान् लड़ाई समाप्त हुई और ऐसा लगा कि अब समस्त दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले हिन्दुस्तानियोंको शान्ति मिल गई। मैं खेद और हर्षके साथ दक्षिण आफ्रिकासे इंग्लैंडको रवाना हुआ' जहाँ मुझे गोखलेसे मिलकर हिन्दुस्तान आना था। मैं जिस दक्षिण आफ्रिकामें इक्कीस वर्षतक रहा और जिसमें मैंने असंख्य कड़वे-मीठे अनुभव प्राप्त किये और जहाँ रहकर में अपने जीवनका लक्ष्य देख सका उस देशको छोड़ते हुए मुझे बहुत दुःख और खेद हुआ। साथ ही मुझे यह विचार करके हर्ष हुआ कि मुझे अब हिन्दुस्तानमें जाकर गोखलेकी अधीनतामें बहुत वर्षतक सेवा करनेका सौभाग्य मिलेगा।

इस लड़ाईका ऐसा सुन्दर अन्त होनेके साथ-साथ दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानि- योंकी आजकी स्थितिपर दृष्टिपात करते हुए एक क्षणके लिए ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तानियोंने इतने कष्ट सहन किये, वे आखिर किसलिए थे? इससे सत्याग्रहके शस्त्रकी उत्तमता कहां सिद्ध हुई ? हमें इन प्रश्नोंका उत्तर पानेके लिए यहाँ विचार

१. अपनी इस यात्रा के दौरान गांधीजीने दक्षिण आफ्रिकाके संघर्ष के अनुभवोंके सम्बन्धमें जो लेख लिखे वे इंडियन ओपिनियनके स्वर्ण जयन्ती अंक, १९१४ में प्रकाशित हुए।

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