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पत्र: मु० रा० जयकरको

कच्छ जाना चाहिए और अपनी तबीयत पूरी तरह सुधार लेनी चाहिए। मेरी इस बातपर भरोसा रखना कि मैंने यह उपवास बिना अच्छी तरह सोचे शुरू नहीं किया है। मैंने इसपर दो रात विचार किया। उपवास करनेका खयाल सबसे पहले इतवारकी रातको ' आया था। आज सुबह शालाकी प्रार्थना सभा मैने अन्तिम रूपसे उपवासका निर्णय किया। मुझे उपवासोंका इतना अभ्यास हो गया है कि सात दिन कुछ नहीं हैं। मेरी समझ में उपवासके अन्त में शारीरिक रूपसे पहलेसे ज्यादा अच्छा महसूस करूंगा; २१ दिनके उपवासके बाद भी तो मैंने ऐसा ही महसूस किया था। यह पत्र केवल तुम दोनों बहनोंके लिए नहीं वरन् मीठूबहन और जईबहनके लिए भी है। मैं उन्हें अलगसे नहीं लिख रहा हूँ। जो लोग झूठी भावुकतामें पड़कर व्याकुल हों, उन्हें समझानेके लिए मैं तुम्हें अपना एजेंट नियुक्त करता हूँ।

मो० क० गांधी
 

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०६६२) की फोटो-नकलसे ।

३. पत्र: मु० रा० जयकरको
अहमदाबाद
 
२४ नवम्बर, १९२५
 

प्रिय श्री जयकर,

आपका पत्र मिला। किसी पदको स्वीकार करनेके विषयमें आपके विचार कुछ भी क्यों न हों, मुझे तो आपके दक्षिण आफ्रिकाके लिए प्रस्तावित शिष्टमण्डलमें शामिल होनेकी बातको स्वीकार कर लेनेमें कुछ नुकसान नहीं दिखाई देता। मुझे पूरा भरोसा है कि आपसे उसे जबरदस्त ताकत मिलेगी। आप शिष्टमण्डलमें जाते हैं या कोई और नियुक्तिकी शर्तें निश्चित रूपसे जान लेनी चाहिए। मैंने इस विषयपर 'यंग इंडिया के आगामी अंकमें थोड़ी चर्चा की है। यदि नियुक्तिकी शर्तें सदस्योंपर अवांछनीय ढंग से प्रतिबन्ध लगाती हों, या राष्ट्रवादीकी हैसियतसे हम जो स्थिति स्वीकार नहीं कर सकते, उसे स्वीकार करनेकी अपेक्षा रखती हों, तो किसी भी स्वाभिमानी भारतीयका शिष्टमण्डल में शामिल होनेकी स्वीकृति न देना स्वाभाविक ही है। शिष्टमण्डलको दक्षिण आफ्रिकामे क्या करना चाहिए सो तो आप जानते ही हैं। मैंने इसपर भी 'यंग इंडिया' के अपने लेखमें कुछ कहा है। आपने अपने और पण्डितजीके मतभेदोंका उल्लेख किया है। मुझे एक मित्रका पत्र मिला, जिसमें उन्होंने मुझसे बीचमें पड़कर मतभेद

१. २२ नवम्बर ।

२. जयकरने शिष्टमण्डलमें काम करनेके सरकारी आमन्त्रणको अस्वीकार कर दिया था।

३. देखिए " दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय ", २६-११-१९२५ ।

४. मोतीलाल नेहरू ।