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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूर करानेके लिए लिखा था। लेकिन उस समय मैंने आपसे या पण्डितजीसे कुछ कहना ठीक नहीं समझा। परन्तु अब चूंकि आपने इत्तफाकसे उन मतभेदोंका उल्लेख किया है, मैं सोचता हूँ कि आप हो सके तो पण्डितजीसे मिल लें, और बन सके तो मतभेदोंको बातचीत करके हल कर लें। मैं समाचारपत्रोंमें इसके बारेमें बराबर पढ़ता तो नहीं रह पाया हूँ फिर भी लोग जो कुछ बताते रहे हैं उससे तो यही लगता है कि किस बातपर आप दोनोंमें मतभेद हैं, इसीकी सही जानकारी सबको नहीं है।

हृदयसे आपका,
 
मो० क० गांधी
 
श्री मु० रा० जयकर
 
३९१, ठाकुरद्वार
 
बम्बई
 

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०६६३) की फोटो - नकलसे ।

४. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

अहमदाबाद
 
२४ नवम्बर, १९२५
 

प्रिय मोतीलालजी,

आपका पत्र मिला । में तीन दिनसे आपको पत्र लिखनेकी बात सोच रहा था । इलाज के लिए कमलाका जवाहरलालके साथ स्विटजरलैंड जानेका विचार बहुत ही अच्छा है । यहाँकी बनिस्बत वहाँके इलाजसे निश्चय ही अधिक स्थायी लाभ होगा, लेकिन सोचता हूँ कि उसे वहाँ जाड़ोंमें न भेजा जाये; बल्कि अप्रैल में ही वह वहाँ जाये । इसलिए मेरा ऐसा विचार है कि इस समय बिना आगा-पीछा किये उसे लखनऊ भेजना ठीक रहेगा; और जवाहरलालको चाहिए कि वह जहाँतक बने ज्यादासे- ज्यादा उसीके पास रहे । मेरा मन आपकी इन पारिवारिक परेशानियोंके बारेमें सोचता रहता है । मैं आशा करता हूँ कि कमला फिरसे जल्दी ही स्वस्थ हो जायेगी ।

पर पारिवारिक परेशानियोंके कारण ही सही आपको कामसे थोड़ी फुरसत मिल जाना ठीक ही है। लगातार परिश्रम करते हुए आपको बीच-बीचमें आराम लेना ही चाहिए। राजनीतिक परेशानियाँ और मतभेद तो हमेशा बने रहेंगे । इसलिए थोड़े समय विश्राम कर लेनेमें कुछ खास हानि नहीं है । मैंने बैठकोंकी पूरी-पूरी रिपोर्ट नहीं देखी है; लेकिन मैं सम्बन्धित मोटी-मोटी सुर्खियों और विवरणोंकी दो-चार लकीरें जरूर देखता रहा हूँ। इस तरह सरसरी निगाह डालते रहने से मुझे इतना अन्दाज तो हो ही गया है कि आपको काफी सफलता मिल रही है; इसमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं है ।