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लेखक क्या कहता है। उसने पाँच उपाय सुझाये हैं। उनमें से पहला उपाय' में पाठकोंके लिए 'यंग इंडिया' के इस अंकम प्रकाशित करता हूँ ।

श्री पेजने अपने अन्तिम अध्यायका शीर्षक दिया है : “युद्धके बारेमे विभिन्न धर्म और सम्प्रदाय क्या करेंगे ? " मैंने उसे दूसरा नाम दे दिया है जो 'यंग इंडिया' के पाठकोंको अधिक उपयुक्त लगेगा। वे देखेंगे कि श्री पेजके अधिकांश तर्क सभी धर्मोपर लागू होते हैं ।

चौथा अध्याय जिन खण्डोंमें विभक्त किया गया है, उनमें श्री पेजने योग्यता- पूर्ण ढंगसे विभिन्न कारणोंकी जाँच की है और उन्हें संक्षेपमें गिनाया है। इनमें पहला है - "जिस प्रकारका जीवन व्यतीत करनेकी ईसाने हमें शिक्षा दी है, युद्ध उसका मूलतः और स्वभावतः घोर उल्लंघन करता है। " यद्यपि कट्टर ईसाइयोंके लिए इस खण्डमें पढ़नेको काफी सामग्री है, किन्तु साधारण पाठक उन सन्दर्भोंको समझेगा जिन्हें लेखकने संक्षिप्त रूपमें दिया है। किन्तु लेखक यह बताता है कि आधुनिक युद्ध एक ऐसी विपत्ति है जिसे कोई भी नैतिक विवेक रखनेवाला व्यक्ति विचलित हुए बिना देखता नहीं रह सकता। लेखकने विन्स्टन एस० चर्चिलके लेखोंसे यह उद्धृत किया है :

यह युद्ध सभी प्राचीन युद्धोंसे इस बातमें भिन्न था कि युद्धरत पक्षोंकी शक्ति अतुलनीय और विनाशके साधन भयावह थे । .. हामी ईसाई देशोंने युद्धमें केवल दो ही बातें नहीं की हैं- यन्त्रणा देना।... सभ्यता तथा विज्ञानके हामी ईसाई देशों ने युद्ध में केवल दो ही बातें नहीं की है -- मानव-भक्षण और यंत्रणा देना ...


धर्मपरायण व्यक्तियों द्वारा युद्धका विरोध होना ही चाहिए, इसका दूसरा कारण यह है कि यह "ईसाके साम्राज्यके विस्तारका कारगर साधन नहीं है और सम्भवतः अपने उद्देश्यको भी विफल बना देता है।" वे आगे कहते हैं: "

हम अब श्री पेजको बहुमूल्य पुस्तिकाकी समाप्तिपर पहुँच रहे हैं। मैं अन्तिम तीन खण्डोंको नहीं ले रहा हूँ, क्योंकि वे 'यंग इंडिया' के पाठकोंको अधिक दिलचस्प नहीं लगेंगे। अन्तिम अध्यायके तीसरे खण्डमें यह दिखानेका प्रयत्न किया गया है कि "सरकारोंको युद्धको प्रणालीको त्यागने और सुरक्षा तथा न्याय हासिल करनेके अधिक कारगर साधन खोजने के लिए मजबूर करनेका सबसे सीधा रास्ता यही है कि सभी व्यक्ति, समुदाय और संघ-बद्ध संस्थाएँ युद्धमें पड़नेसे बिलकुल इनकार कर दें । " निम्नलिखित अनुच्छेद सभी धार्मिक प्रवृत्तिके लोगों तथा सब प्रकारके सुधार प्रेमियोंके लिए उपयोगी हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २६-११-१९२५

१. २५-२-१९२६ के यंग इंडिया में "क्या यह रोका जा सकता है ? " शीर्षकसे प्रकाशित।

२. २२-४-१९२६ के यंग इंडिया में, “धर्म कैसे सहायक हो सकता है ? " शीर्ष कसे प्रकाशित।

३. देखिए यंग इंडिया, २९-४-१९२६ ।

४. देखिए यंग इंडिया, ६-५-१९२६ ।

२९-१७