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८. दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय

श्री एन्ड्रयूजके दक्षिण आफ्रिकाके लिए रवाना हो जाने तथा निकट भविष्यमें भारत सरकारकी तरफसे एक शिष्टमण्डलके दक्षिण आफ्रिका जाने और डॉ० अब्दुर्रह- मानके नेतृत्व में एक शिष्टमण्डलके दक्षिण आफ्रिकासे आनेकी सम्भावनासे स्पष्ट है कि इस समय दक्षिण आफ्रिकाका प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासियोंके लिए तो यह प्रश्न जीवन और मरणका प्रश्न है। लगता है कि संघ सरकारने दक्षिण आफ्रिकासे भारतवासियोंके अस्तित्वको मिटा देनेका निश्चय कर लिया है और वह भी सीधा और खुला मार्ग अपनाकर नहीं, बल्कि उन्हें हर तरहसे. परेशान करके । प्रस्तावित कानूनके द्वारा प्रामाणिक ढंगसे रोजी कमानेके सभी मार्ग बन्द हो जायेंगे। यह कानून बनानेमें संघ सरकारका मन्शा भारतीयों में स्वाभिमानकी भावनाको बिलकुल ही कुचल डालना है। जब वहाँ स्वतन्त्र विचारवाले और स्वाभिमानी भारतवासी ही न रह जायेंगे और सरकारका वास्ता केवल मजदूरों, रसोई बनानेवालों, चपरासियों और ऐसे ही दूसरे लोगोंसे रह जायेगा तब संघ सरकार भारतीयों के प्रश्नकी झंझटसे बरी हो जायेगी। उन्हें तो चन्द नौकरोंकी ही जरूरत है, वे अपने साथ समानताका दावा करनेवाले व्यापारियों तथा काश्तकारोंको नहीं रखना चाहते।

इसलिए संघ सरकारने हिन्दुस्तानसे वहाँ गये हुए शिष्टमण्डलको जो उत्तर दिया है, वह आश्चर्यजनक नहीं है। उन्होंने प्रस्तावित विधेयकको कानून बना डालना ठान ही लिया है। वे केवल तफसीलके बारेमें 'रचनात्मक सुझाव दिये जानेपर उनपर विचार कर सकते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं। गोलमेज परिषद् बुलानेके बारेमें उन्होंने अभी कोई निश्चय नहीं किया है।

यदि दक्षिण आफ्रिकाके भारतवासी दृढ़ता दिखायें और आपसमें ऐक्य बनाये रखें तो आशा है वहाँ श्री एन्ड्रयूजकी उपस्थितिसे बहुत कुछ काम बन सकेगा। यदि भारत सरकार द्वारा भेजे गये शिष्टमण्डलको सिद्धान्तके विषयोंमें दृढ़ रहनेको कह दिया गया हो तो वह भी बहुत कुछ कर सकेगा। भारतीयोंको १९१४ के समझौतेके अनुसार जो हक दिये गये थे उसमें तो कोई भी कमी होनी ही नहीं चाहिए और न किसी गिर- मिटियेको भारत वापस भेजनेकी बात उठाई जानी चाहिए। यह प्रस्तावित कानून तो उन्हीं प्राप्त हकोंको छीन रहा है।

जो लोग दक्षिण आफ्रिकाके बारेमें कुछ भी जानते हैं उन्हें मालूम है कि यूरोपीय जनताका वहाँके हिन्दुस्तानी बाशिन्दोंके प्रति सचमुच कोई विरोध नहीं है। यदि वहाँको यूरोपीय जनताका उनसे कोई सक्रिय विरोध होता तो वहाँ बसे हुए यूरोपीय लोग उनका वहां रहना असम्भव बना सकते थे, क्योंकि वहाँ उन्हींकी आबादी सबसे ज्यादा है। दक्षिण आफ्रिकाके मूल निवासी भी भारतीयोंका विरोध नहीं कर रहे हैं। दक्षिण आफ्रिकाके मूल निवासी या यूरोपीय बाशिन्दे उनका विरोध नहीं करते, इतना ही नहीं, वे उनके साथ निस्संकोच और प्रसन्नतापूर्वक व्यवहार रखते हैं, तभी