ही बढ़ती है तो मुझमें इतनी अक्ल अवश्य है कि में दूर खड़ा रहूँ और घावके
भर जानेतक राह ही देखूं।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-११-१९२५
१०. उल्लेखनीय सफलता
एक पत्र-लेखक लिखते हैं:[१] इससे स्पष्ट हो जाता है कि खादी किस तरह चुपचाप फैल रही है। पत्र-लेखक महारायने जैसे कातनेवाले लोगोंका जिक्र किया है वैसे कातनेवाले मैंने हर जगह पाये हैं। लेकिन यह ब्यौरा विशेषरूपसे उल्लेखनीय है। जिनका किसी मण्डलसे कोई सम्बन्ध नहीं है और जो बिना किसी मण्डलकी सहायताके ही स्वेच्छासे कात रहे हैं, उनके कातनेका परिणाम कदाचित् ही ज्ञात हो पात है। इसलिए मेरी समझमें तो खादीको सार्वत्रिक बनाना केवल समय सापेक्ष है; और वह समय अब दूर भी नहीं है। यदि स्वेच्छा से किये गये प्रयत्नों द्वारा वह लोकप्रिय बन जायेगी, तो फिर यन्त्रचालित मशीनका काम उसके साथ स्पर्धा नहीं कर सकेगा।
उत्साहवर्धक आँकड़े
३० सितम्बर, १९२५ को पूरे होनेवाले वर्षके तमिलनाड में खादी-सम्बन्धी आंकड़े ध्यान देने योग्य हैं :
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१९२४-२५
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१९२३-२४
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१९२४-२५में सिर्फ थोक बिक्री ४,४५,३२४ रु०की वर्षके कुल उत्पादन जितनी ही है।
वर्षमें कुल बिक्री, जिसमें दूसरे प्रान्तोंमें की गई बिक्री भी शामिल है, ८,३२,८४६ रु० है, जबकि १९२३-२४के आँकड़े ३,६५,८५८ रु० रहे थे।
उत्पादन तथा बिक्री दोनों ही में इस साल वृद्धि हुई है। उत्पादन ५० प्रतिशत बढ़ा और बिक्री दूनीसे भी ज्यादा हुई।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-११-१९२५
- ↑ १. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें तिरुपतिके १५२ कातनेवाले लोगोंका ब्यौरा था, जिनमें विधान सभाओंके सदस्य, वकील, डाक्टर, शिक्षक, क्लर्क, व्यापारी, विद्यार्थी, स्त्रियाँ और बच्चे भी शामिल थे।