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वक्तव्य : समाचारपत्रोंको

पीठ पीछे निन्दा मत करो और सबसे मुख्य बात है कि अपने आपके प्रति सच्चे रहो ताकि किसी अन्यके प्रति तुम झूठे न बनो। जीवनकी छोटी-छोटी बातोंमें भी सच्चाईका बर्ताव ही शुद्ध सात्विक जीवनका रहस्य है।

तुम लोगोंने यह तो देखा ही होगा कि ऐसे अवसरोंपर मैं, 'वैष्णवजन तो तेने कहिये,' इस पदसे प्रेरणा पाता हूँ। यदि मैं 'भगवद्गीता' भूल भी जाऊँ तो यह पद मुझे बल देने भरको काफी है। सच तो यह है कि इससे भी एक और आसान चीज है; लेकिन शायद तुम उसे आसानीसे न समझ सको; परन्तु उसने मुझे अपनी जीवन-यात्रा निरन्तर ध्रुव तारेकी तरह दिशा-दर्शन किया है। वह चीज है मेरा दृढ़ विश्वास कि सत्य ही परमेश्वर है और असत्य ईश्वरकी अवहेलना है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिय , १०-१२-१९२५

२४. वक्तव्य : समाचारपत्रोंको

१ दिसम्बर, १९२५

महात्माजी यद्यपि कमजोर थे, उन्होंने उपवासके कारणोंके सम्बन्धमें निम्नलिखित वक्तव्य दिया:

'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें मैंने इस विषयपर विस्तारसे पूरी-पूरी बातें कही हैं। इसलिए मैं यहाँ उनकी चर्चा करना ठीक नहीं समझता। मुझे केवल इतना ही कहना है कि उपवासके कारण सर्वथा व्यक्तिगत और निजी थे, तथा वह आश्रमकी शुद्धिके लिए किया गया था। मैं पूरे सप्ताह पूर्ण स्वस्थ और काफी सशक्त रहा। किसी भी प्रकारकी किसी चिन्ताका जरा-भी कारण कभी उपस्थित नहीं हुआ। उपवास तोड़ने के बाद मैं बिलकुल ठीक-ठाक अनुभव कर रहा हूँ। उपवास समाप्त करनेके बाद आम तौरपर उसके जो असर हुआ करते हैं, उनमें से कोई अभीतक दिखाई नहीं देता।

जो वजन और शक्ति कम हुई है, उसे मैं शीघ्र फिर पा लेनेकी उम्मीद करता हूँ। मैं यह भी आशा करता हूँ कि लोग मेहरबान बने रहकर इस उपवाससे पहले जो कार्यक्रम मैंने बनाया था उसे पूरा करनेका अतिरिक्त भार मुझपर नहीं डालेंगे । मैं समझता हूँ कि सुविधापूर्ण यात्रा और थोड़ी-बहुत बातचीतसे मुझे अधिक थकान नहीं आयेगी। मित्रोंको मेरे स्वास्थ्यकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। मेरे उपवाससे उनको जो दुःख हुआ उसके लिए मुझे खेद है। मेरा जीवन ही ऐसा है। यदि में उनका यह दुःख बचा सकता तो निश्चय ही वैसा करता; लेकिन मुझे दूसरा रास्ता ही दिखाई नहीं दिया।

१. देखिए " मेरा यह उपवास , ३०-११-१९२५ ।