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२३. भाषण: विद्यार्थियोंके समक्ष

१ दिसम्बर, १९२५

पहली दिसम्बरकी सुबह अपना उपवास समाप्त करने से पूर्व गांधीजीने बच्चोंको अपनी शैय्याके आसपास इकट्ठा करके धीरे-धीरे मन्द स्वरमें निम्नलिखित सन्देश दिया :

पिछले मंगलवारकी, जब मैंने अपना उपवास शुरू किया था, बात सोचो। मैंने वह कदम क्यों उठाया ? मेरे सामने तीन रास्ते थे:

(१) दण्ड - - मैं शारीरिक दण्ड देनेका सुगम रास्ता अपना सकता था। सामान्य तौरपर एक शिक्षक विद्यार्थियोंकी गलती पकड़नेपर उन्हें दण्ड देकर ऐसा गर्व कर सकता था मानो उसने कोई अच्छा काम किया हो । में स्वयं भी एक शिक्षक रहा हूँ, यद्यपि अपनी व्यस्तताओंके कारण आजकल मैं तुम्हें शिक्षा नहीं दे पाता। एक शिक्षककी हैसियतसे दण्डके इस स्वीकृत तरीकेको अमान्य करनेके सिवाय मेरे सामने दूसरा विकल्प नहीं था, क्योंकि अपने अनुभवसे मैंने उस तरीकेको निष्फल और हानि- कर भी पाया है।

(२) उपेक्षा- मैं तुम्हें अपने भाग्यपर छोड़ सकता था। शिक्षक बहुधा ऐसा करता है। वह सोचता है कि यदि बच्चे अपना पाठ काफी ठीकसे याद करते हैं और उन्हें जो-कुछ पढ़ाया जाता है उसे वैसा ही सुना देते हैं, तो यह काफी है। उनके व्यक्तिगत व्यवहारसे मुझे क्या लेना-देना है और यदि ऐसा हो भी तो मैं उनपर निगाह कैसे रख सकता हूँ ? उपेक्षा करना भी मुझे ठीक नहीं जान पड़ा।

(३) प्रेम -- तीसरा तरीका प्रेमका था । तुम लोगोंका चरित्र और व्यवहार. मेरे लिए एक पवित्र थाती है। इसलिए मुझे तुम्हारे जीवनमें, तुम्हारे अन्तर्तम विचारों, तुम्हारी इच्छाओं और वासनाओंमें पैठना ही चाहिए और यदि उनमें कहीं कोई गन्दगी हो तो उसे दूर करनेमें मुझे तुम्हारी मदद करनी चाहिए। चूँकि आन्तरिक स्वच्छता ही सीखनेकी पहली चीज है, अन्य चीजें तो जब यह प्रथम और सबसे महत्त्वपूर्ण पाठ सिखाया जा चुका हो, तब बादमें सिखानी चाहिए। तो फिर ऐसे में क्या करता? तुम्हें दण्ड देनेका प्रश्न ही नहीं था। मुख्य शिक्षक होनेके नाते इस उपवासके रूपमें मुझे स्वयं अपने ऊपर दण्ड लेना था। आज यह समाप्त हुआ।

इन दिनों चुपचाप पड़े-पड़े मैंने चिन्तन किया है और उससे काफी कुछ सीखा है। आपने क्या सीखा? क्या तुम लोग मुझे आश्वासन दे सकते हो कि अपनी गलती फिर कभी नहीं दुहराओगे ? भूल तो फिर भी हो सकती है, लेकिन यदि भूलसे बचनेका रास्ता तुम लोग न निकालो तो यह उपवास तुम्हारे लिये तो व्यर्थ ही हो जायेगा। सच्चाई हर बातकी कुंजी है। किसी भी परिस्थितिमें कभी मत बोलो । कुछ भी गुप्त मत रखो। अपने शिक्षकों और गुरुजनोंपर पूरी तरह विश्वास रखो और खुले मनसे हर बात उन्हें बताओ। किसीके प्रति द्वेषभाव न रखो, किसीकी