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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रगति यद्यपि धीरे-धीरे हो रही लेकिन दृढ़तापूर्वक हो रही है। सूचीसे मालूम होता है कि दानके कारणको समझकर नहीं, बल्कि किसी-न-किसी व्यक्तिके प्रभावमें आकर दान देनेकी आदत अब भी वैसी ही चली आ रही है। मैं भविष्यमे सदस्य बननेवालोंसे जोर देकर कहना चाहता हूँ कि वे सही पद्धतिको ही अपनायें, विपरीत पद्धतिको नहीं।

शुद्ध खादी

चन्द्रनगरका प्रवर्तक संघ एक बड़ी संस्था है। अबतक उसमें मिली-जुली खादी तैयार होती थी और उसीको वे बेचते थे। मेरी चेतगंजको यात्राके अवसरपर संघके अधिष्ठाता श्री मोतीलाल रायने अपने कारखानेको शुद्ध खादीके कारखानेके रूपमें बदल लिया है। अब वे लिखते हैं :

हमने चन्द्रनगरके मृणालिनी वस्त्र कार्यालयको और कलकत्ता प्रवर्तक भण्डारको ता० ३० अक्तूबरसे शुद्ध खादीके केन्द्रोंमें परिणत कर दिया है। इस महत्वपूर्ण परिवर्तनको सूचना आपको उसी दिन दे दी गई थी।

अब सारी संस्था शुद्ध खादीका ही काम करेगी; लेकिन आप यह तो जानते ही हैं कि यह साहस करके हमने अपने सिरपर कितनी बड़ी जोखिम उठाई है।

मुझे खेद है कि वे परिवर्तन सम्बन्धी जिस सूचनाका जिक्र करते हैं वह मुझे नहीं मिली है। मैं मोती बाबूको इस परिवर्तनके लिए बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यदि आरम्भ में इस संस्थाको कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो भी वह खादीका कार्य ही करती रहेगी।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १०-१२-१९२५

४३. पत्र : वि० ल० फड़केको

सत्याग्रह आश्रम

वर्धा

[१० दिसम्बर, १९२५]

भाई मामा,


मैंने आज वर्धा आते ही तुम्हारा पत्र पढ़ा। आश्रममें तो मुझमें जितनी शक्ति थी वह सब मैंने आश्रम कार्यमें और 'यंग इंडिया' तथा 'नवजीवन 'के कार्यमे खर्च की। मैं आज यहाँ आया हूँ और यहाँ आकर सारा समय केवल पत्र-व्यवहारमें

१. साधन-सूत्र में तारीख १५ दिसम्बर १९२५ दी गई है, पर यहाँ तिथि गांधीजीके वर्धा पहुँचनेके उल्लेखसे निश्चित की गई है।