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भाषण : दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंसे सम्बन्धित प्रस्तावपर

समर्थन और सहायताके लिए विशाल आन्दोलन संगठित करें; अन्यथा प्रस्तावमें किया गया "पूर्ण समर्थन " का वादा निरर्थक हो जायेगा। उन्होंने जनतामें किये जानेवाले ऐसे प्रचारकी भी निन्दा की कि जबतक हमें स्वराज्य नहीं मिलता तबतक हम विदेशोंमें बसे भारतीयोंकी सहायता नहीं कर सकते।

इसका उत्तर देते हुए श्री गांधीने स्वीकार किया कि पण्डित बनारसीदास उन थोड़ेसे कार्यकर्त्ताओंमें से हैं जो विदेशोंमें बसे भारतीयोंके लिए कार्य कर रहे हैं। किन्तु वे भी अति उत्साहमें भटक गये हैं ? कांग्रेस जो-कुछ कर सकती थी वह सब उसने किया है। उससे अधिक वह कर नहीं सकती। मेरे इस प्रस्तावका मसविदा' दक्षिण आफ्रिकी शिष्टमण्डलके साथ तीन घंटेकी बातचीतके बाद तैयार किया गया था। इस प्रस्ताव द्वारा कांग्रेसने घोषणा कर दी है कि वह अधिक से अधिक क्या कर सकती है। जहाँतक आर्थिक सहायताका सवाल है साम्राज्यीय नागरिक संघ (इम्पी- रियल सिटिजनशिप एसोसिएशन) के पास इस कार्यके लिए पर्याप्त सार्वजनिक निधि है। मैंने स्वयं पण्डित बनारसीदासको धन मुहय्या करके दिया है। दूसरे वक्ताने यह आपत्ति उठाई है और इस बातपर जोर दिया है कि उस वाक्यको हटा दिया जाये जिसमें ब्रिटिश सरकारसे स्वीकृति न देनेके लिए कहा गया है। इसके बारेमें मेरा कहना है कि यदि इस वाक्यको भी हटा लिया गया तो इस प्रस्तावसे दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंको क्या सान्त्वना मिलेगी ? फिर क्या आप लोग कौंसिलोंमें काम करने नहीं गये हैं ? मैं तो चाहता हूँ कि में बिना कौसिलोंके काम कर सकूं, किन्तु आप लोग वैसा नहीं कर सकते। आप मुझपर विश्वास कीजिये, मैं दक्षिण आफ्रिकाका भीतर- बाहर, सब कुछ जानता हूँ । यदि मैं ऐसा अनुभव करता कि मेरे दक्षिण आफ्रिका जाने से कुछ लाभ हो सकता है, तो मैं वहाँ अवश्य चला जाता।

अन्तमें प्रस्ताव हर्षध्वनिके साथ स्वीकृत हो गया ।

[ अंग्रेजी से ]

लीडर, २८-१२-१९२५




१. देखिए “ भाषण : कानपुर अधिवेशनमें ", २६-१२-१९२५ ।