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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं करना चाहिए। वफादारीकी भी एक मर्यादा होती है। वफादारीसे इतना ही अपेक्षित है कि जो नौकरी मिली हो उसकी हदतक और जबतक वह उक्त नौकरीको कर रहा है उसे वफादार रहना चाहिए। उदाहरणार्थ डाकखाने में काम करनेवाला नौकर निश्चित किये हुए घंटों में काम करे और रुपये की या पत्रोंकी चोरी न करे, अथवा अपनी नौकरीके समय में सरकारकी जो गुप्त बातें मालूम हुई हों उन्हें जाहिर न करे। लेकिन वह चौबीसों घंटेका चपरासी नहीं है। उसने अपनी आत्माको बेच नहीं डाला है। जो राष्ट्रीय आन्दोलनको समझता है वह उसके प्रति विचारसे अवश्य ही सहानुभूति रख सकता है और यदि प्रकट नियमोंके विरुद्ध न हों तो अपने व्यव- हारमें भी सहानुभूति दिखा सकता है।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २७-१२-१९२५

९०. पत्र : वसुमती पण्डितको

कानपुर
मीन वार [ २८ दिसम्बर, १९२५]


चि० वसुमती,

पिछले चार दिनोंसे तुम्हारा कोई पत्र नहीं है। मुझे सप्ताह में एक पत्र मिल जाये तो भी काफी है ।

मेरी तबीयत अच्छी रहती है। दही और फल मुझे अनुकूल आते हैं। वजन तो बढ़ा ही है। कमानीके काँटेसे ९८ पौंड है; यह हमारी तराजूपर ९४ नहीं तो ९३ पौंड तो अवश्य है। वजनका इतना बढ़ जाना बहुत कहा जा सकता है। काम तो अच्छी तरह कर ही पाता ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू ० ५९८ ) से ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित


१. २९-१२-२५ के एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको दी गईं भेंटके अनुसार २८ दिसम्बरको गांधीजीका मौनवार था ।