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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं लौट आता, वह भारत सरकारके समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर देता और जबतक स्वयं भारत सरकार अरजी तैयार करके संघ सरकारके पास नहीं भेज देती । लेकिन दक्षिण आफ्रिकाके रंग-ढंगको देखते हुए संघ सरकारका उतना शिष्टाचार दिखाना भी विवादास्पद है, जितने शिष्टाचारकी एक सरकार दूसरी सरकारसे आशा रख सकती है ।

बिशप फिशरकी चेतावनी

अपनी तथ्यपूर्ण पुस्तिकाके अन्तिम भागमें पादरी फिशरने संघ सरकारको दृढ शब्दों में यह चेतावनी दी है :

समस्या कठिन है और फिलहाल तो उसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है। प्रस्तावित एशिया-विरोधी विधेयक इसका हल नहीं है; बल्कि उससे तो भारतीय जनताके दिलोंमें क्षोभ उत्पन्न हो सकता है। यदि वह विधेयक पास हो गया तो इससे भारतीयोंके मनमें सन्ताप पैदा होने के अतिरिक्त अन्य कुछ न होगा। दमन किया गया तो उनके मनमें शहीद हो जानेकी भावना बढ़ हो जाएगी और संसारमें सर्वत्र भारतीयोंके प्रति मैत्रीभाव रखनेवालोंकी संख्या बढ़ेगी। इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि सच्ची राजनीतिज्ञतासे काम लिया जायेगा और संघ-संसद वर्तमान प्रस्तावको अव्यावहारिकता और उसमें निहित अविवेकको समझेगी। यदि में दक्षिण आफ्रिकाका कोई श्वेत नागरिक होता तो में इस विधेयकको श्वेत लोगोंके सबसे बड़े हितपर एक सोधी चोट मानता। यों यह चोट भारतीयोंके विरोधमें पड़ती दिखाई देती है; किन्तु इससे भारतीयों- को होनेवाली प्रत्यक्ष हानिसे कहीं अधिक अप्रत्यक्ष हानि श्वेत लोगोंकी होगी। इतिहासने यह सिद्ध कर दिया है कि दमनके उपायों और मूलोच्छेदन मूलक कार्यक्रमोंसे पीड़ितकी अपेक्षा दमनकारीके हो सद्गुणों और शक्तियोंका अधिक ह्रास होता है। राजनीतिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रोंसे सम्बन्धित यूनान, रोम, रूस आदिसे लेकर इसके अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं ।

पूर्वग्रहका एक कारण

दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके प्रति अविवेकपूर्ण पूर्वग्रहके कारणोंमें बिशप फिशर निम्नलिखित कारण भी बतलाते हैं :

दूसरी बात यह है कि भारतीय शराब नहीं पीते। दक्षिण आफ्रिकाके श्वेत नागरिक शराबपर अन्धाधुन्ध खर्च करते हैं। यह आशंका उठना स्वाभाविक ही है कि यूरोपीय समाज शराबपर इतना अन्धाधुन्ध खर्च करता हुआ दीर्घकाल तक किस प्रकार टिक सकता है। शराबपर जो रकम फूंकी जाती

१. देखिए " टिप्पणियाँ ", ७-१-१९२६ का उपशीर्षक बिशप फिशरकी पुस्तिका' ।

२. अंशतः उद्धृत ।