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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

वक्तव्य प्रमाण-रूप प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इनमें से बहुतसे वक्तव्य इस सम्बन्धमें हिन्दुस्तानकी सरकारको दी हुई अजियोंमें दिये गये हैं। किन्तु जो होना था वह तो हो गया। जो जहाज इन मजदूरोंको लेकर आफ्रिका गया था उसीमें सत्याग्रहके महान् वृक्षका बीज भी वहाँ ले जाया गया था । हिन्दुस्तानमें नेटालके हिन्दुस्तानी दलालोंने इन मजदूरोंको कैसे धोखा दिया, कैसे ये लोग धोखेमें आकर नेटाल गये, नेटालमें जाकर उनकी आँखें कैसे खुली आँखें खुलनेपर वे वहाँ कैसे रहे, उनके बाद दूसरे लोग वहाँ कैसे गये, उन्होंने वहां जाकर धर्म और नीति सम्बन्धी सारे बन्धन कैसे तोड़ डाले अथवा वे बन्धन कैसे टूट गये और कैसे विवाहित [स्त्री ] और वेश्याके बीचका भेद बिलकुल मिट गया, इसकी कहानी तो इस छोटी-सी पुस्तकमें लिखी नहीं जा सकती।

ये मजदूर नेटालमें एग्रीमेंटके अन्तर्गत आये हुए मजदूर होनेके कारण अपनेको गिरमिटिया कहने लगे हैं। अतः हम अब एग्रीमेंटको गिरमिट और उसके अन्तर्गत भेजे गये मजदूरोंको गिरमिटिया कहेंगे।

नेटालमें गिरमिटिया मजदूरोंके भेजे जानेकी खबर मॉरिशसमें फैली तब सम्ब- न्धित हिन्दुस्तानी व्यापारी नेटाल जानेके लिए ललचाये । नेटाल और हिन्दुस्तानके बीच स्थित इस द्वीपमें हजारों हिन्दुस्तानी रहते हैं, जिनमें मजदूर भी हैं और व्यापारी भी। इनमें से एक व्यापारी स्वर्गीय अबूबकर आमदने नेटोलमें अपनी पेढ़ी खोलनेका इरादा किया। उस समय नेटालके अंग्रेजोंको भी, हिन्दुस्तानी व्यापारी कितना कुछ कर सकते हैं, इसका अनुमान नहीं था। उनको इसकी परवाह भी नहीं थी। वे गिरमिटि- योंकी सहायता से गन्ना, चाय और काफी आदि पैदा करके बड़ा मुनाफा कमा रहे थे और थोड़ी-सी ही अवधिमें चाय, काफी और गन्नेसे चीनी बनाकर दक्षिण आफ्रि- काको देने लगे थे। यह एक बड़ी बात थी। उन्होंने वन कमाकर बड़े-बड़े भवन बना लिए थे और जंगलमें मंगल होने लगे थे। ऐसी स्थितिमें सेठ अबूबकर-जैसे नेक, सरल और कुशल व्यापारीका उनके बीचमें आ बसना उनको क्यों खटकता ? और फिर एक अंग्रेजने उनसे साझा भी कर लिया। सेठ अबूबकरने व्यापार किया, जमीन खरीदी और खूब पैसा कमाया। इसकी खबर उनके जन्मस्थान पोरबन्दर और उसके आसपासके शहरोंमें फैल गई। इसलिए दूसरे मेमन भी नेटाल पहुॅचे। बादमें सूरतके और बोहरे भी वहाँ पहुँच गये। सेठोंको मुनीमोंकी जरूरत तो पड़ती ही है, इस लिए गुजरात और काठियावाड़के हिन्दू मुनीम भी वहाँ पहुँच गये।

इस प्रकार नेटालमें दो वर्गीके हिन्दुस्तानी हो गये; एक स्वतन्त्र व्यापारी तथा उनके स्वतन्त्र कर्मचारी और दूसरे शर्तबन्द गिरमिटिया मजदूर। कुछ समयमें गिर- मिटियोंकी सन्तानें हुई। गिरमिटके कानूनके अनुसार यह सन्तान यद्यपि मजदूरी करनेके लिए बन्धी नहीं थीं, फिर भी उसपर इस कानूनकी कड़ी धारायें तो अवश्य ही लागू होती थीं। गुलामीकी छाप गुलामोंकी सन्तानपर लगे बिना कैसे रह सकती थी ? ये गिरमिटिये पाँच वर्षका करार करके वहाँ जाते थे। पाँच वर्षकी अवधि बीतनेपर वे मजदूरी करनेके लिए बाध्य नहीं थे; उनको अधिकार था कि यदि वे चाहें तो