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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वाहाँ स्वतन्त्र रूपसे मजदूरी अथवा व्यापार करें और नेटालमें बस जायें। कुछ लोगोंने अपने इस अधिकारका उपयोग किया और कुछ हिन्दुस्तान वापस आ गये। जो लोग नेटालमें रह गये उनको वहाँ 'फ्री इंडियन' कहते थे। हम उनको गिरमिट मुक्त अथवा संक्षेपमें मुक्त- हिन्दुस्तानी कहेंगे । यह अन्तर समझ लेनेकी जरूरत है, क्योंकि जो अधिकार केवल ऊपर बताये हुए व्यापारी, मुनीम आदि स्वतन्त्र हिन्दुस्तानियोंको प्राप्त थे वे सभी अधिकार गिरमिटमुक्त हिन्दुस्तानियोंको प्राप्त नहीं थे। उदाहरणके लिए उनको एक जगह से दूसरी जगह जानेके लिए परवाना लेना जरूरी होता था । यदि वे विवाह करना चाहें और यह चाहें कि वह वैध माना जाये तो इसके लिए यह जरूरी था कि विवाह गिरमिटिया संरक्षक अधिकारीके कार्यालयमें दर्ज कराया जाये । इसके अतिरिक्त उनपर अन्य कड़े बन्धन भी लगे हुए थे ।

हिन्दुस्तानी व्यापारियोंने देखा कि वे केवल गिरमिटियों और मुक्त हिन्दुस्तानियों- के साथ ही नहीं, हन्शियोंके साथ भी व्यापार कर सकते हैं। हब्शी लोगोंको हिन्दु- स्तानी व्यापारियोंके साथ व्यापार करनेमें बड़ी सुविधा होती थी। वे गोरे व्यापारियोंसे बहुत डरते थे । गोरे व्यापारी हृब्शियोंके साथ सौदा सुलुफ तो चाहते थे, किन्तु हब्शी ग्राहक उनसे मिठास भरे शब्दोंकी आशा नहीं कर सकता था। अपने पैसेके बदले पूरी चीज पा जाना ही हब्शी गनीमत मानता था । किन्तु कुछ लोगोंको ऐसा कटु अनुभव भी होता था कि चार शिलिंगकी चीज लेनी थी, चीज लेकर उसने एक पौंड तो दिया, बाकी रकम १६ शिलिंगके बजाय चार शिलिंग ही दी गई है अथवा बिलकुल नहीं दी गई। यदि गरीब ग्राहकने बाकी पैसा वापस माँगा अथवा हिसाबकी भूल दिखाई, तो उसे बदले में भौंड़ी गालियां मिलीं। यदि इतनेसे ही पीछा छूट गया तो गनीमत, कभी-कभी गालियोंके साथ लात और घूंसे भी खाने पड़ते थे। मेरे कह- नेका मतलब यह नहीं है कि सभी अंग्रेज व्यापारी ऐसा कर सकते हैं । किन्तु यह तो अवश्य ही कहा जा सकता है कि ऐसे उदाहरण खासे मिलते हैं। इसके विपरीत हिन्दुस्तानी व्यापारी उनसे मिठासके साथ हँसकर ही बोलते हैं । हन्शी भोले होते हैं और दूकानमें जाकर चीजोंको अच्छी तरह देखना-भालना चाहते हैं। हिन्दुस्तानी व्यापारी इसको सहन करते हैं। यह सच है कि वे परमार्थकी दृष्टिसे ऐसा नहीं करते, उसमें उनकी स्वार्थ दृष्टि होती है; हिन्दुस्तानी व्यापारी अवसर मिलनेपर हब्शी ग्राहकोंको ठगनेसे नहीं चूकते, किन्तु वे फिर भी हन्शियोंमें लोकप्रिय हैं; इसका कारण उनकी यह मिठास ही है। इसके अतिरिक्त हब्शी हिन्दुस्तानी व्यापारियोंसे डरते तो बिलकुल ही नहीं हैं। इसके विपरीत ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जहाँ किसी हिन्दुस्तानी व्यापारीने किसी हब्शी ग्राहकको ठगनेका प्रयत्न किया है और ग्राहकने पता चल जानेपर व्यापारीको मारा है। हिन्दुस्तानी व्यापारियोंने गालियाँ तो बहुत बार खाई हैं। इसलिए यदि हिन्दुस्तानी और हब्शियोंके मामलेमें किसीको डरनेकी बात है तो वह हिन्दुस्तानियोंको है । अन्तमें परिणाम यह निकला कि हिन्दुस्तानी व्यापारियोंको हन्शियोंसे व्यापार करना बहुत लाभप्रद लगा और हब्शी तो सारे दक्षिण अफ्रीका में फैले हुए हैं।