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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुलिस सुपरिंटेंडेंटने ये सब बातें इतनी मिठाससे, हँसकर और दृढ़तापूर्वक कही कि लोगोंने जो वे चाहते थे सो वचन दे दिया। समिति नियुक्त की गई। उसने पारसी रुस्तमजीके घरका कोना-कोना ढूँढ़ डाला और तब लोगोंसे कहा, 'सुपरिंटेंडेंट- का कहना सच है । उन्होंने हमें मात दे दी है।' इससे लोगोंको निराशा तो हुई किन्तु वे अपने वचनपर दृढ़ रहे । उन्होंने कोई नुकसान नहीं किया और अपने-अपने घर चले गये। यह घटना १३ जनवरी १८९७ की है।

उसी दिन सुबह जब यात्रियोंपर से प्रतिबन्ध हटाया गया था तभी डर्बनके एक अखबारका संवाददाता जहाजपर मेरे पास आया था, और मुझसे पूछकर सब तथ्य लिखकर ले गया था। मेरे ऊपर जो आरोप लगाये गये थे उनका पूर्णतः निरा- करण करना बिलकुल आसान था । मैंने सब बातोंके उदाहरण देकर यह बता दिया था कि मैंने तिल भर भी अतिशयोक्ति नहीं की है। मैंने जो कुछ किया वह मेरा धर्म था । यदि मैं वैसा न करता तो मनुष्य गिने जाने योग्य भी न होता । ये तथ्य दूसरे दिन पूरेके-पूरे प्रकाशित कर दिये गये और समझदार गोरोंने अपना दोष स्वीकार किया। अखबारोंने नेटालकी स्थितिके सम्बन्धमें अपनी सहानुभूति दिखाई; किन्तु उन्होंने साथ ही मेरे कार्यका पूरा समर्थन किया। इससे मेरी प्रतिष्ठा बढ़ी और उसके साथ-साथ हिन्दुस्तानी जातिकी भी । उनको इस बातका प्रमाण भी मिला कि गरीब होकर भी हिन्दुस्तानी कायर नहीं हैं और हिन्दुस्तानी व्यापारी भी अपने वाणिज्य-व्यवसायकी परवाह न करके अपने सम्मान और अपने देशके लिए लड़ सकते हैं।

इससे यद्यपि एक ओर जातिको कष्ट सहन करना पड़ा और दादा अब्दुल्लाको बहुत नुकसान उठाना पड़ा, फिर भी दूसरी ओर में यह मानता हूँ कि अन्तमें लाभ ही हुआ। जातिको भी अपनी शक्तिका कुछ पता चला और उसका आत्मविश्वास बढ़ गया। मेरा भी अनुभव कुछ बढ़ गया और अब जब में उस दिनका विचार करता हूँ तो मुझे लगता है कि ईश्वर मुझे इस प्रकार सत्याग्रह के लिए तैयार कर रहा था । नेटालकी घटनाओंका असर इंग्लैंडमें भी हुआ । उपनिवेश मंत्री श्री चेम्बरलेनने नेटाल सरकारको तार दिया कि जिन लोगोंने मेरे ऊपर हमला किया है उनपर मुकदमा चलाया जाये और मेरे साथ न्याय किया जाये ।

श्री एस्कम्ब न्यायविभागके अटर्नी जनरल थे । उन्होंने मुझे बुलाया और श्री चेम्बरलेनके तारका जिक्र किया। उन्होंने मुझे जो कष्ट हुआ इसपर खेद प्रकट किया और मैं बच गया, इसपर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होंने फिर कहा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको और आपकी जातिको कोई नुकसान पहुँचे, मेरी यह इच्छा बिलकुल नहीं थी । मुझे भय था कि आपको नुकसान पहुँच सकता है, इसलिए मैंने

१. इस घटनाके विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९७-३२० तथा आत्मकथा, भाग ३, अध्याय २ और ३ ।

२. देखिए खण्ड २, १६६-१७८ ।

३. देखिए आत्मकथा, भाग ३, अध्याय ३ ।

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