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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

इतनी अधिक उत्तेजित है कि मेरे पास उसको नियन्त्रणमें रखने का कोई साधन नहीं है। यदि आप इस निर्देशको नहीं मानेंगे तो यह मकान तो नष्ट-भ्रष्ट होगा ही, उसके अतिरिक्त जान-मालका कितना नुकसान होगा में इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता ।"

मैं स्थितिको तुरन्त समझ गया । मैंने उसी समय सिपाहीकी पोशाक माँगी और उसको पहनकर बाहर निकल आया और उस अधिकारीके साथ ही सही सलामत पुलिसकी चौकीपर पहुँच गया। तबतक सुपरिटेंडेंट अवसरके अनुकूल गीतों और बातोंसे भीड़को रिझाते रहे। जब उनको यह इशारा मिल गया कि में पुलिसकी चौकी- पर पहुँच गया हूँ तब उन्होंने अपनी असली बातचीत इस प्रकार आरम्भ की :

'आप क्या चाहते हैं ? '

'हम गांधीको चाहते हैं । '

'आप उनका क्या करना चाहते हैं ? '

'हम उसको जलायेंगे । '

'उन्होंने आपका क्या बुरा किया है ? '

'उसने हमारे सम्बन्धमें हिन्दुस्तानमें बहुत-सी झूठी बातें कहीं हैं और वह नेटालमें हजारों हिन्दुस्तानियोंको लाना चाहता है । '

'किन्तु यदि वे बाहर न निकलें तो आप क्या करेंगे ? 'तो हम इस मकानमें आग लगा देंगे । '

'इसमें तो बाल-बच्चे हैं। दूसरे स्त्री-पुरुष भी हैं। क्या आपको इन स्त्रियों और बालकोंको जलानेमें लज्जा नहीं आयेगी ? '

'यह तो आपका दोष है । आप हमें लाचार करते हैं तो हम क्या करें ? हम तो किसी दूसरेको नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते। आप गांधीको हमें सौंप दें इतना ही पर्याप्त है। यदि आप अपराधीको हमें न सौंपें और उसे पकड़ने में दूसरोंको नुकसान पहुँचे तो उसका दोष हमारे ऊपर डालना कहाँका न्याय है ?

सुपरिंटेंडेंटने तब उनसे मुसकराते हुए कहा, 'गांधी तो तुम्हारे बीचमें होकर ही सही सलामत निकलकर दूसरी जगह पहुँच गया है।' लोग यह सुनकर खिल- खिलाकर हँस पड़े और "झूठ है, झूठ है" की आवाजें लगाने लगे। सुपरिटेंडेंट बोला, "यदि आप अपने बूढ़े पुलिस कप्तानकी बातका विश्वास नहीं करते तो आप अपनी पसन्द के तीन-चार आदमियोंकी एक समिति बना लें और दूसरे सब लोग यह वचन दें कि समिति के सदस्योंके सिवा दूसरा कोई भी मकानमें न घुसेगा और यदि समितिके सदस्योंको मकानमें गांधी न मिले तो सब लोग यहाँसे चुपचाप चले जायें। आपने आज जोशमें आकर पुलिसकी सत्ता नहीं मानी है। इसमें बदनामी पुलिसकी नहीं आपकी है । इसीलिए पुलिसने आपके साथ चाल चली। वह आपके बीचमें से आपके शिकारको निकाल ले गई और आप मात खा गये । आप इसमें पुलिसको तो अवश्य दोष नहीं देंगे। जिस पुलिसको आपने नियुक्त किया है उसने तो अपने कर्त्तव्यका पालन किया है।"

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