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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक चिट्ठी लिख देनी चाहिए कि आपका विचार मुकद्दमा चलानेका नहीं है। मैं श्री चेम्बरलेनके सम्मुख केवल अपनी बातचीतका सार प्रस्तुत करके ही अपनी सर- कारका बचाव नहीं कर सकता। मुझे तो आपकी चिट्ठीका सार ही तारसे भेजना होगा। किन्तु मैं यह नहीं कहता कि आप यह चिट्ठी इसी समय लिख दें, आप इस सम्बन्धमें अपने मित्रोंसे सलाह कर लें। आप श्री लॉटनकी सलाह भी ले लें। यदि उसके बाद भी आपका यह विचार पक्का रहे तो आप मुझे पत्र लिख दें, किन्तु मुझे इतना तो कहना ही चाहिए कि आप अपने पत्रमें साफ स्वीकार करें कि मुकदमा न चलानेकी जिम्मेदारी आपकी ही है । मैं उस हालतमें ही उसका उपयोग कर सकूंगा ।' मैंने कहा, "मैंने इस सम्बन्धमें अभीतक किसीसे सलाह नहीं ली है। आपने मुझे किसलिए बुलाया है, मैं यह भी नहीं जानता था । मुझे इस सम्बन्धमें किसीसे सलाह करनेकी इच्छा भी नहीं है। मैंने जब श्री लॉटनके साथ जहाजसे निकलनेका निश्चय किया, तभी अपने मनमें यह तय कर लिया था कि यदि मुझे कोई नुकसान पहुँचेगा तो मैं उससे मनमें बुरा नहीं मानूंगा। अतः अब मैं मुकदमा चला ही कैसे सकता हूँ ? मेरे लिए तो यह धार्मिक प्रश्न हैं और आपकी तरह मैं यह भी मानता हूँ कि मेरे आत्मसंयमसे मेरी जातिको लाभ होगा। इतना ही नहीं मेरी मान्यता यह भी है कि उससे स्वयं मुझे भी लाभ पहुँचेगा । इसलिए मैं सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर यहीं आपको पत्र लिख देना चाहता हूँ। और मैंने वहीं उनसे एक कोरा कागज लेकर पत्र लिख दिया।

अध्याय ८

हिन्दुस्तानियोंने क्या किया – ३

इंग्लैंडसे सम्बन्ध

पाठकोंने पिछले प्रकरणोंमें देखा होगा कि हिन्दुस्तानी जातिने जाने और अन- जाने अपनी स्थिति सुधारनेका कितना प्रयत्न किया और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई। इस समाजने जहां दक्षिण आफ्रिकामें अपने सर्वांगीण विकासका यथाशक्ति प्रयत्न किया वहाँ हिन्दुस्तान और इंग्लैंडसे भी जितनी सहायता मिल सकी उतनी लेनेका प्रयत्न किया। मैं हिन्दुस्तानकी सहायता के सम्बन्धमें तो थोड़ा-सा लिख ही चुका हूँ । इंग्लैंडसे सहायता लेनेके सम्बन्धमें हमने क्या किया, यह लिखना भी जरूरी है। हमारा कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिसे सम्बन्ध स्थापित करना तो आवश्यक था ही; इसलिए हर सप्ताह भारतके पितामह दादाभाई नौरोजीको और समितिके प्रमुख सर विलियम वेडरबर्नको सारी खबरें पत्रके रूपमें भेज दी जाती थीं और अवसर आनेपर प्रार्थना-

१. उपलब्ध नहीं है।

२. इससे पहला पत्र शायद ५ जुलाई १८९४ को लिखा गया। इसके बाद गांधीजी कई सालतक नियमित रूपसे दक्षिण आफ्रिकाके समाचार, दादाभाई नौरोजी, सर विलियम वेडरबर्न और ब्रिटिश भारतीय समितिको भेजते रहे। देखिए खण्ड १ से ७ ।

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