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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह यह कहकर ऐसी पूरी तैयारीसे युद्ध करेगा कि राष्ट्रपति क्रूगर लड़ाईमें उनका सामना न कर सकेंगे और ब्रिटिश साम्राज्यकी मांगें माननेके लिए मजबूर हो जायेंगे। जिस जातिके १८ से लेकर ६० तककी आयुके सभी पुरुष युद्ध-कुशल हों और जिसकी स्त्रियाँ भी चाहें तो लड़ सकती हों और जिस जातिमें जातीय स्वतन्त्रता धार्मिक सिद्धान्त मानी जाती हो, वह जाति किसी चक्रवर्तीके बलके सम्मुख भी ऐसी दीन- दशाको प्राप्त नहीं हो सकती। बोअर जाति ऐसी ही वीर थी।

राष्ट्रपति क्रूगरने ऑरेंज फ्री स्टेटसे तो पहले ही सलाह कर ली थी। इन दोनों बोअर राज्योंकी शासन पद्धति एक समान थी। राष्ट्रपति क्रूगरका विचार अंग्रेजोंकी माँगे पूरी तरह स्वीकार करने अथवा खान-मालिकोंको सन्तुष्ट करनेका बिलकुल नहीं था। इसलिए राष्ट्रपति क्रूगरने लॉर्ड मिलनरको अन्तिम रूपसे अपने विचार और अपनी माँगसे आगाह करके ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेटकी हृदोंपर अपनी सेनाएँ जमा दीं। इसका परिणाम सिवा युद्धके और कुछ हो ही नहीं सकता था। ब्रिटिश साम्राज्य जैसा चक्रवर्ती राज्य धमकीके आगे नहीं झुक सकता था। जब अन्तिम चुनौतीकी अवधि पूरी हो गई तब बोअर सेना बिजलीकी तरह तेजीसे आगे बढ़ी। उसने लेडीस्मिथ, किम्बर्ले और मेफिसिंग नगरोंको घेर लिया। इस प्रकार सन् १८९९ में इस जबरदस्त युद्धका आरम्भ हो गया । पाठक जानते ही हैं कि युद्धके कारणों में एक कारण बोअर राज्यों में हिन्दुस्तानियोंकी स्थिति थी; अर्थात् अंग्रेजोंकी एक माँग यह भी थी कि बोअर राज्यों में हिन्दुस्तानियोंकी स्थिति सुधारी जाये ।

इस अवसरपर दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंको क्या करना चाहिए, यह बड़ा प्रश्न उनके सम्मुख उपस्थित हुआ। बोअर जातिमें से तो सभी पुरुष युद्धमें चले गये थे । वकीलोंने वकालत, किसानोंने खेती, व्यापारियोंने अपना व्यापार और नौकरोंने अपनी नौकरियाँ छोड़ीं और फौजमें भरती हो गये। अंग्रेजोंके पक्षमें बोअरोंके बराबर तो नहीं, किन्तु केप कालोनी, नेटाल और रोडेशियासे असैनिक वर्गोंके लोग बहुत बड़ी संख्यामें स्वयंसेवक बन गये थे। बहुतसे बड़े-बड़े अंग्रेज वकील और व्यापारी स्वयंसेवकोंमें सम्मिलित हुए। मैं जिस अदालतमें वकालत करता था उसमें बहुत कम वकील दिखाई देते थे। बहुत-से बड़े-बड़े वकील युद्धके कामोंमें लग गये थे। हिन्दुस्तानियोंपर जो आरोप लगाये जाते थे उनमें से एक आरोप यह था कि ये लोग दक्षिण आफ्रिकामें केवल धन कमानेके लिए ही आते हैं, वे अंग्रेजोंपर केवल भाररूप हैं और जैसे घुन भीतर-ही-भीतर लकड़ीको खोखला कर देता है, ये लोग वैसे ही हमारे कलेजोंको कुतर-कुतर कर खानेके लिए ही यहाँ आये हैं। यदि देशपर हमला हुआ और हमारे घरबार लुटनेका अवसर आया तो ये हमारे काम बिलकुल न आयेंगे। उस समय हमें लुटेरोंसे केवल अपना ही नहीं, इनका बचाव भी करना पड़ेगा। हम सब हिन्दु- स्तानियोंने इस आरोपपर भी विचार किया। हम सबको लगा कि इस आरोपमें सत्य नहीं है, यह सिद्ध करनेका यह एक बहुत अच्छा अवसर आया है। किन्तु दूसरी ओरसे यह भी कहा गया कि :

"हमें तो अंग्रेज और बोअर दोनों समान रूपसे सताते हैं। हमें ट्रान्सवालमें कष्ट उठाने पड़ते हैं और नेटाल तथा केपमें भी। हम वहाँ उनसे बरी हों सो बात नहीं

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