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दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रश्न

है तो न्यायका एक छोटा-सा कार्य, परन्तु जिन भारतीय लोगोंका कारोबार उपनिवेशमें जम चुका है उनके लाभकी दृष्टिसे यह अत्यन्त अभीष्ट है।

निवेदन है कि इस पत्रकी बातोंको आप परम माननीय उपनिवेश-मन्त्रीतक पहुँचा देनेकी कृपा करें।

आपका, आदि,
 

{

मो० क० गांधी
 

[अंग्रेजीसे]

सम्राज्ञीके मुख्य उपनिवेश-मन्त्री, लंदनके नाम नेटालके गवर्नरके १४ जुलाई, १८९९ के खरीता नं० ९६ का सहपत्र ।

कलोनियल ऑफ़िस रेकर्ड्स, मेमोरियल्स ऐंड पिटिशन्स १८९९ ।

४५. दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रश्न'
डर्वन
 
जुलाई १२, [१८९९]
 

पिछले लेख में मैं बता चुका हूँ कि इस समय जो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य बहुत विक्षुब्ध है और जो सारे संसारके आकर्षणका केन्द्र बना हुआ है, उसमें भारतीयोंका प्रश्न क्या है। दक्षिण आफ्रिकामें प्लेगके आतंककी चर्चा मैंने अपने पहले लेख में की थी। अब मैं नेटालके भारतीयोंके प्रश्नके एक पहलूपर, जो कि भारतीय बच्चोंकी शिक्षापर असर करता है, लिखना चाहता हूँ। इससे मालूम होगा कि वहाँ पूर्वग्रहको कहाँतक बढ़ने दिया गया है।

इस समय यहाँ विशेष रूपसे गिरमिटिया भारतीयोंके बच्चोंकी शिक्षाके लिए कोई पच्चीस स्कूल हैं। इनमें लगभग २००० विद्यार्थी पढ़ते हैं। इनमें से अधिकतर स्कूलोंका प्रबन्ध ईसाई पादरी करते हैं, जो मुख्यत: 'चर्च ऑफ इंग्लैण्ड मिशन' के लोग हैं। इस मिशनके भारतीय विभागके प्रबन्धकर्ता रेवरेंड डॉ. बूथ हैं। ये एक साधु पुरुष है, और भारतीय समाजका ईसाई-वर्ग इनसे बहुत प्रेम करता है। इन स्कूलोंको सरकारी सहायता मिलती है, परन्तु वह इन्हें चलानेके लिए किसी भी प्रकार पर्याप्त नहीं है। इनकी इमारतें प्रायः बहुत पुराने ढंगकी हैं, और सिर्फ थोड़ी-सी लोहेकी नालीदार चादरों और लकड़ीके तख्तोंसे बनी हुई हैं। उनकी बनावट तो बहुत ही निकम्मी है, और देहातोंमें उनमें फर्शतक नहीं है, धरतीमाता ही फर्शका काम देती है। एक स्थानपर तो एक घुड़सालको स्कूल बना डाला गया है और बालक क्योंकि सबसे गरीब भारतीय वर्ग के हैं, इसलिए स्वभावत: ही अच्छे कपड़े पहनकर नहीं आते। पढ़ाई भी इन स्कूलोंमें इनके आस-पासकी परिस्थितिके अनुसार ही होती है। शिक्षकोंको वेतन २ पौंड से ४ पौं० मासिकतक मिलता है। किसी-किसीको इससे अधिक भी मिलता है। इस हैसियतके किसी भी व्यक्ति -संभलकर रहनेवाले अविवाहित व्यक्ति --का रहन-सहनका, अर्थात्, साफ-सुथरे तरीकेसे रहने का खर्च ८ पौंड मासिकसे कम नहीं होगा। भारतीयोंके लिए शिक्षकके पेशेकी

१. देखिए पादटिप्पणी, पृष्ठ ६३ ।

२. देखिए “यून्सवालके भारतीय," मई १७, १८९९ ।

३. देखिए, “दक्षिण आफ्रिकामें प्लेगका आतंक," मार्च २०, १८९९ ।


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