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५२. नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही'
[अक्टूबर ११, १८९९ के बाद]
 

पहली कार्यवाही कांग्रेसकी स्थापनाके एक वर्ष बाद अगस्त १८९५२ में प्रकाशित की गई थी। अनेक कारणोंसे इस बीच दूसरी कार्यवाही तैयार करना सम्भव नहीं हुआ।

आयव्यय

इसके साथ नत्थी किये गये पर्चे से सदस्य एक नजरमें जान सकेंगे कि तीन वर्षों में कितना खर्च हुआ है। इससे मालूम हो जायेगा कि मुख्य-मुख्य रकमें प्रदर्शन-संकट के समय खर्च की गई थीं। अकेले प्रार्थनापत्र पर ही लगभग १०० पौंड खर्च आ गया था। यदि इन वर्षों में १८९४- ९५ की अपेक्षा औसतन अधिक व्यय हुआ है, तो आयमें भी बहुत वृद्धि हुई है। पहली कार्य- वाहीके प्रकाशनका एक अच्छा और शायद सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि कांग्रेसने तुरन्त निर्णय कर दिया कि सारे सालका चन्दा पेशगी अदा किया जाये; और हर महीने चन्दा एकत्र करनेका झंझटभरा तरीका छोड़ दिया गया। फलतः १८९५-९६ का चन्दा एकदम वसूल' हो गया; और १८९६ में कुछ कार्यकर्ताओंने जो सरगर्मी दिखाई वह सचमुच आश्चर्य- जनक थी। उन्होंने न केवल अपना समय दिया, बल्कि उनमें जो समर्थ थे वे चन्दा एकत्र करनेके लिए इधर-उधर जानेको अपनी गाड़ियां भी साथमें ले आये। इस सम्बन्धमें स्टैजरकी यात्रा सबसे अधिक स्मरणीय है। अध्यक्ष श्री अब्दुल करीम हाजी आदम, श्री अब्दुल कादिर, श्री दाऊद मुहम्मद, श्री रुस्तमजी, श्री हाशम जुम्मा, श्री मदनजीत, श्री पारुक, श्री हुसेन मीरन और श्री कथराडाने अवैतनिक मन्त्रीको साथ लेकर वेरुलम, टोंगाट, अमलाटी, स्टजर तथा परेके जिलेका दौरा किया। इस दौरेके लिए अध्यक्ष श्री मुहम्मद दाऊद तथा श्री अब्दुल कादिरने अपनी गाड़ियाँ दी। टोंगाटमें श्री कासिम भानको सदस्य बनानेके लिए ये सदस्य उनकी दूकानमें आधी राततक धरना देकर बैठे रहे। उन्होंने यह परवाह भी नहीं की कि भोजन किया है या नहीं। मगर श्री कासिम अपने हठ पर अड़े रहे, इसलिए कार्यकर्ताओंको वापस जाना पड़ा। किन्तु उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वे अगली सुबह अपना काम दूनी शक्तिसे कर सकें। उनमें से एक सदस्य तो बहुत सवेरे उठकर, चायकी बूंदतक मुंहमें डाले बिना ही, उनकी दूकानमें जा डटा। अन्य सदस्य भी बिना कुछ खाये वहाँ दोपहरतक बैठे रहे। उन्होंने दूकानको तभी छोड़ा जब कि श्री भान सदस्य बन गये और उन्होंने अपना चन्दा दे दिया। इसके बाद वे दूसरे स्टेशनको गये। रास्तेमें श्री हाशिम जुम्मा अपने घोड़ेसे गिर पड़े और कुछ क्षणोंतक बिलकुल बेहोश रहे।

१. यह कार्यवाहीका मसविदा है जिसमें गांधीजीके हाथसे किये गये बहुत-से संशोधन है। इसकी कोई अन्य प्रति उपलब्ध नहीं। यह कार्यवाही विभिन्न समयोंमें अलग-अलग अंशोंमें लिखी गई थी और अक्टूबर ११, १८९९ के बाद पूरी हुई। इसी तारीखको बोअर-युद्ध छिड़ा था, जिसका उल्लेख पृष्ठ ११८ पर किया गया है।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ २३५-२४३ ।

३. यह उपलब्ध नहीं है।

४. यहाँपर भारतीय-विरोधी उस प्रदर्शनका उल्लेख है जो जनवरी १३, १८९७ को डवनमें गांधीजी तथा उनके भारतीय सहयात्रियों के जहाजसे उतरते समय किया गया था । देखिए खण्ड २, पृष्ठ १७८-७९ ।

५. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९७ और आगे।


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