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नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

सड़क खराब थी और शाम हो गई थी, इसलिए सुझाव दिया गया कि सभी वापस चले जायें। किन्तु श्री हाशम जुम्माने एक नहीं सुनी और यात्रा जारी रही। स्टजर पहुँचनेपर यह सारी मेहनत सफल हो गई। श्री मुहम्मद ईसपजी, जिनका कि अब दुर्भाग्यवश देहावसान हो चुका है, टोंगाटमें कार्यकर्ताओंका उत्साह देखकर स्वयं प्रोत्साहित हो उठे। यद्यपि वे अपने किसी महत्त्वपूर्ण कार्यके लिए डर्बन जा रहे थे, तथापि वे स्टैजर जानेके लिए कार्यकर्ताओंके साथ हो लिये। वहाँ उन्होंने सबकी खूब खातिरदारी की। उनके जरिये केवल स्टजरमें कांग्रेसके लिए ५० पौंडसे भी अधिककी रकम प्राप्त हुई।

हमारे पूर्वाध्यक्ष श्री अब्दुल करीम हाजी आदमके नेतृत्वमें सदस्योंकी उत्कृष्ट निष्ठाके ऐसे ही कई उदाहरण दिये जा सकते हैं। पहाड़ी प्रदेशसे--: -जहाँ बाकायदा कोई सड़क नहीं बनी हुई थी - गुजरकर न्यूलैंड्सकी यात्रा, बिना मार्गदर्शकके रातको खेतोंसे होते हुए बटरी प्लेस जाना, इस्पिजोकी यात्रा, श्री ईसपजी उमरकी दूकानकी यात्रा, जहाँ कि सदस्य ५ बजे शामसे लेकर ११ बजेतक भोजन किये बिना ही बैठे रहे --इन सबपर अलग-अलग एक अध्याय लिखा जा सकता है। किन्तु यहाँ इतना कहना पर्याप्त है कि उस समय' कार्यकर्ताओंने अपने उद्देश्यके प्रति जो उत्साह, लगन तथा अनन्यभाव दिखाया उसकी बराबरी शायद ही कभी हुई हो। फिर भी, दुर्भाग्यवश अब वही बात हमारे लिए नहीं कही जा सकती। वह प्रबल जोश-खरोश अब, मालूम पड़ता है, ठंडा पड़ गया है। ऐसी स्थितिके बहुत-से कारण है। उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनपर सदस्योंका कोई वंश नहीं चल सकता। किन्तु यह लिखते दुःख होता है कि सदस्य जितना कर सकते थे उतना उन्होंने नहीं किया और दो वर्ष पूर्व हमें जो यह दृढ़ आशा थी कि हम इस समय तक ५,००० पौंडकी एक निधि एकत्र कर लेंगे, वह फिलहाल तो एक स्वप्न-मात्र होकर रह गई है। कांग्रेसपर ३०० पौंड, शायद ४०० पौंड, देनदारी है। और यह कहना मुश्किल है कि यह रकम कैसे प्राप्त की जायेगी। मैरित्सबर्ग, चार्ल्स टाउन, न्यूकसिल, वेरुलम, टोंगाट, स्टैंजर और अन्य स्थानोंसे चन्दा वसूल नहीं हुआ; और उसकी वसूलीके लिए अभीतक कुछ किया भी नहीं गया। एक समय था जब कि सदस्योंकी कुल संख्या ३०० तक पहुँच गई थी, लेकिन ठीक-ठीक कहें तो, वह अब केवल ३७ है। मतलब यह कि केवल ३७ सदस्य ऐसे हैं जिन्होंने आजतकका चन्दा अदा किया है। अब समय आ गया है जब कि सदस्यों को अपनी दीर्व निद्रासे जाग जाना चाहिए, नहीं तो समय हाथसे निकल सकता है।

अक्टूबर १८९५ में कांग्रेसका कार्य

अक्टूबर १८९५ में ट्रान्सवालकी संसद (फोक्सराट) ने एक प्रस्ताव पास कर ब्रिटिश प्रजाजनोंको अनिवार्य सैनिक-सेवासे मुक्त कर दिया। साथ ही यह शर्त भी लगा दी कि ब्रिटिश प्रजाजनों" में भारतीय शामिल नहीं है। यद्यपि ठीक-ठीक कहें तो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके अपने भाईबन्दोंके मामलोंमें सक्रिय हस्तक्षेप करना हमारा काम नहीं था, फिर भी उनकी सहमतिसे कांग्रेसने इस प्रश्नको हाथमें लिया। एक तारका मसविदा तैयार करके ट्रान्सवालसे अपने लंदन- वासी हमददियों को भेजा गया। समय आने पर एक प्रार्थनापत्र' भी भेज दिया गया। जहाँतक मालूम हुआ है, इसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकारने अभीतक इस आपत्तिजनक प्रस्तावको मंजूर नहीं किया है।

१. देखिए. खण्ड १, पृष्ठ २५८ ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ २५८ ।

३. देखिए खण्ड १, पृष्ठ २५८-२६० ।

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