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६३. पत्र: नेटालके धर्माध्यक्ष बेन्सको
[डर्बन
 
दिसम्बर ११, १८९९ के पूर्व ]
 

श्रीमन्,

रेवरेंड डॉ. बूथ सूचित करते हैं कि श्रीमानकी सम्मतिमें उन्हें भारतीय आहत-सहायक दलके साथ तबतक नहीं जाना चाहिए जबतक कि वे स्वयं जाना अत्यावश्यक न समझते हों और उनकी सच्ची आवश्यकता न हो। वे यह भी कहते हैं कि मैं अभी तो दलके साथ नहीं जाऊँगा, परन्तु यदि सचमुच आवश्यकता हुई तो पीछे जा सकता हूँ।

मेरी नम्र सम्मतिमें डॉ० बूथके बिना दलका काम चल ही नहीं सकता। उनका चिकित्सा- ज्ञान हमारे लिए अधिकतम मूल्यवान है और अगर वे हमारे साथ नहीं गये तो हमारा लगभग १,००० लोगोंका दल बिना किसी चिकित्सक-सलाहकारके रहेगा। वे आहत-सहायकोंके नायकोंसे परिचित हैं और उन्हें काम उन्होंने ही सिखाया है। इस कारण उनके मौजूद रहनेसे नायकोंमें आत्मविश्वास उत्पन्न हो जायेगा। परन्तु यहाँ मैं इस लाभकी चर्चा नहीं करता। इस बातसे तो श्रीमान भी सहमत होंगे कि जो घायल व्यक्ति इन नायकोंके सुपुर्द किये जायेंगे उनकी चिकित्सा करने में डॉ. बूथसे अतुल सहायता मिलेगी। यहाँ तो उनकी जगह कोई और भी काम कर लेगा, परन्तु आहत-सहायक शिविरमें उनके बिना स्थान खाली ही रहेगा।

मुझे मालूम हुआ है कि डॉ० बूथ अभी मिशन छोड़कर नहीं जा रहे; कमसे कम अगले जूनतक तो वे यहाँ हैं ही। इसलिए मुझे आशा है कि श्रीमान, इस बातका विचार करके कि मैदानमें उनकी आवश्यकता अधिक समयतक नहीं पड़ेगी, उन्हें जानेकी इजाजत दे देनेकी कृपा करेंगे।

श्रीमानका आशाकारी सेवक,
 

एक मसविदेकी फोटो-नकल (एसः० एन० ३३७२-बी) से।

६४. तार : प्रागजी भीमभाईको

[डबन]
 
दिसम्बर ११, १८९९
 

सेवामें

प्रागजी भीमभाई

बेलेयर

स्वयंसेवकोंसे कहिए तैयार हो जायें, संभवतः कल रवाना हों।

गांधी
 

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिको फोटो-नकल (एस० एन० ३३३८) से।

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