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६५. तार : उपनिवेश-सचिवको'
[डर्बन]
 
दिसम्बर ११, १८९९
 

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव

पीटरमैरित्सबर्ग

मैं और श्री गांधी होंगे। कल प्रातः नौ बजे आपकी सेवामें उपस्थित होंगे।

[बूथ]
 

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिको फोटो-नकल (एस० एन० ३३३९) से।

६६. भारतीय आहत-सहायक दल

माननीय हैरी एस्फम्बने, जो १८९७ में नेटालके प्रधानमन्त्री थे, भारतीय आहत-सहायक दलके नेताओंको जोहानिसबर्ग में अपने घर आमन्त्रित किया था। यह दल उस दिन रणभूमिपर जा रहा था। श्री एस्कम्बके मा गांगोजीने जो भाषण दिया था उसका पत्रों में छपा संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जाता है ।

[जोहानिसबर्ग]
 
दिसम्बर १३, १८९९
 

जब ट्रान्सवालने लड़ाई छेड़नेकी अन्तिम सूचना दे दी तब हममें से कुछ लोगोंने सोचा कि अब हमें आपसी मत-भेद भुला देने चाहिए, और क्योंकि हम सम्राज्ञीको प्रजा होने के नाते अपने अधिकारों और विशेष सुविधाओंका आग्रह रखते हैं, इसलिए हमें कुछ करके दिखाना और अपनी राजभक्तिका प्रमाण पेश करना चाहिए। हथियार चलाना हममें से बहुत कम जानते हैं। यहाँ गोरखे और सिक्ख होते तो वे दिखला देते कि वे कैसा लड़ सकते हैं। हमने, अर्थात् अंग्रेजी बोल सकनेवाले भारतीयोंने, निश्चय किया कि हम उपनिवेश और साम्राज्य सरकारोंको अपनी सेवाएँ बिना किसी शर्तके और बिना कोई तनख्वाह लिये अपित करेंगे और जिस-किसी हैसियतमें हमसे काम लिया जायेगा हम उसीमें काम करके उपनिवेशियोंको दिखला देंगे कि हम सम्राज्ञीकी योग्य प्रजा हैं। हमने एक सभा की। उसमें इतना उत्साह था कि वहाँ उपस्थित प्राय: प्रत्येक व्यक्तिने अपना नाम सेवा करने के लिए तैयार व्यक्तियोंकी सूची में लिखवा दिया। उस सूची में से हमने उपयुक्त व्यक्तियोंका चुनाव किया है। मैंने डॉ. प्रिंससे प्रार्थना की कि आप सबकी डॉक्टरी जाँच कर लीजिए, जिससे पता चल जाये कि कितने लोग मैदानमें जाकर काम करनेके योग्य है। डॉ. प्रिंसने २५ को पास किया, और हमने उनके नामोंकी सूची सर- कारको भेज दी। वहाँसे जवाब मिला कि आपकी सेवा अभी स्वीकृत नहीं की जा सकती। इसके

१. दफतरी प्रतिसे मालूम होता है कि यह तार गांधीजीने लिखा और भेजा था।

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