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पत्र: डोनोलीको

कुछ ही समय बाद डॉ० बूथ द्वारा आहत-सेवाका वर्ग आरम्भ किया गया और हम प्रायः प्रति रात्रि उनके व्याख्यान सुनते रहे हैं । सरकारने हमें बतलाया था कि उसे ५० या ६० भारतीयोंको मैदानमें भेजनेकी आवश्यकता होगी; और जब प्रवासियोंके संरक्षक मुझसे मिलने आये तब मैंने उन्हें बतलाया कि हम चलनेकी सूचना मिलनेपर पल-भरमें चलनेको तैयार हो जायेंगे और हमसे जो-कुछ भी करनेको कहा जायेगा सो हम बिना कोई मेहनताना लिये करेंगे। परन्तु उपनिवेश- सचिवने यह काम हमारे लायक नहीं समझा। जब डॉ० बूथको यह पता लगा तब उन्होंने उपनिवेश-सचिवको स्वयं लिखा और बतलाया कि हम क्या काम कर सकते हैं। इसके बाद डॉ० बूथने मेरे साथ पीटरमैरित्सबर्ग जानेकी कृपा की और वहाँ हम बिशप बेन्स और कर्नल जॉन्स्टनसे मिले। कर्नल साहबका खयाल हुआ कि हम आहत-वाहक भारतीयोंके नायकोंका काम बहुत अच्छा कर सकेंगे। तब हमारा स्वप्न सिद्ध हो गया, और यद्यपि दुर्भाग्यवश हमें रण-क्षेत्रके अग्न-भागमें नहीं लगाया गया, तथापि हमें आशा है कि हम अपना काम अच्छी तरह करेंगे। डॉ० बूथने जो-कुछ किया उसके लिए हम उनके परम कृतज्ञ हैं। उन्होंने भी अपनी सेवाएँ सरकारको मुफ्त दी है और वे आज रात हमारे साथ चल रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]

नेटाल मयुरी, १४-१२-१८९९

६७. पत्र: डोनोलीको
[दिसम्बर १३, १८९९ के बाद ]
 

श्री डोनोली

जिला इंजीनियर

प्रिय महाशय,

आपकी आज्ञासे मुझे भारतीय आहत-सहायक दलके कामके लिए पहले दर्जेके ५, दूसरे दर्जे के २० और तीसरे दर्जे के २८ रेल-टिकट दिये गये थे। उनमें से मैं पहले दर्जेका १ और तीसरे दर्जेके १० टिकट बिना काममें लिये इस पत्रके साथ वापस कर रहा हूँ।

तीसरे दर्जे के जो १८ टिकट काममें आ गये उनमें से तीन पीटरमैरित्सबर्गसे काममें लाये गये थे, क्योंकि तीन सेवक उस स्टेशनसे हमारे साथ शामिल हुए थे। उन तीनों टिकटोंके नम्बर क्रमशः ९३०३, ९२९० और ९२८५ थे। यह बात पीटरमैरित्सबर्गके स्टेशन मास्टरको, उसी समय, उन सेवकोंके गाड़ी में बैठनेसे पहले, बतला दी गई थी।

गांधीजीके अपने हाथसे लिखे अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल (एस० एन० ३३५८) से।

१. गांधीजी १४ दिसम्बर की रातको २.१० बजे युद्ध-स्थलके लिए रवाना हुए थे।


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