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७१. आहत-सहायक दल'
[डर्बन]
 
जनवरी ३०, १९००
 

प्रिय महोदय,

स्पीयरमैनकी पहाड़ीपर, घोरतम युद्धके बीच, हमारे भारतीय आहत-सहायक दलने जो कार्य किया उसके विषयमें लेख लिखने के लिए आपका पत्र मिला। हममें से कुछको डोलियोंकी जिम्मे- दारी लेनेके अतिरिक्त दलकी भोजन-व्यवस्थाका कार्य भी करना पड़ रहा था। इसलिए हमें सोने या खाने-पीने तकका समय नहीं मिलता था। इसी कारण मैं अबतक आपके पत्रकी प्राप्ति भी स्वीकार नहीं कर सका। आशा है कि आप मेरी कठिनाई समझकर मुझे क्षमा करेंगे।

परन्तु मुझे समय मिल जाता तो भी मैं लेख न लिखता । कारण यह है कि कोलेजोकी लड़ाईमें हमारे दलने जो कार्य किया था उसके विषयमें ऐडवर्टाइज़रमें प्रकाशित मेरी टिप्पणियाँ देखकर, एक सम्मानित अंग्रेज मित्रने मुझे सलाह दी है कि भारतीय लोगोंको युद्धमें अपने कार्यके विषयमें स्वयं कुछ नहीं कहना चाहिए; उनका कर्तव्य मौन साधकर काम कर देने भरका है। उसके बादसे अबतक, अपने कामके विषयमें प्रकाशनके लिए कुछ भी लिखने के प्रलोभनसे मैं बचता आया हूँ।

आपका सच्चा,
 

गांधीजीके हस्ताक्षरोंमें एक मसविदेकी फोटो-नकल (एस० एन० ३३७२) से।

७२. पत्र: उपनिवेश-सचिवको
१४, मयुरी लेन
 
डर्बन
 
फरवरी २२, १९००
 

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव

पीटरमैरित्सबर्ग

श्रीमन्,

मैं देखता हूँ कि सैनिकों और स्वयंसेवकोंके लिए महारानीके पाससे प्राप्त चॉकलेट अब बाँटा जा रहा है। मुझे मालूम नहीं कि यह चॉकलेट उपनिवेशमें बने आहत-सहायक दलमें भी बाँटा जानेको है या नहीं। परन्तु हो या न हो, भारतीय स्वयंसेवक-नायकों (करीब ३०) ने, जो आहत-

१. नेटाल ऐडवर्टाइज़रके सम्पादकके जनवरी २२, १९०० के पत्रके उत्तरमें गांधीजीने उन्हें यह व्यक्तिगत पत्र लिखा था।

२.ये उपलब्ध नहीं है।

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