पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/१९

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पाठकोंको सूचना

पहले दोनों खण्डोंकी तरह इस खण्डमें भी ऐसे अनेक प्रार्थनापत्र और स्मरणपत्र शामिल हैं जिनपर हस्ताक्षर दूसरोंके हैं किन्तु जिनका मसविदा निस्सन्देह गांधीजीने लिखा था। इस मान्यताके कारण पहले खण्डके उन्नीसवें पृष्ठपर कुछ विस्तारसे दिये जा चुके हैं। इस खण्डमें पृष्ठ २९० पर आये हुए बादके एक प्रलेखसे भी यह स्पष्ट होता है कि उपनिवेश-कार्यालयको भेजे गये सन् १८९४ से १९०१ तक के अधिकतर प्रार्थनापत्र गांधीजीने तैयार किये थे।

इंडियन ओपिनियन के वे लेख भी जिन पर गांधीजीका नाम नहीं था किन्तु जिन्हें श्री छगनलाल गांधी और स्व० श्री एच० एस० एल० पोलकने गांधीजी द्वारा लिखित तय किया, इस खण्डमें शामिल किये गये हैं। इंडियन ओपिनियन और दक्षिण आफ्रिकाकी अन्य प्रवृत्तियोंमें ये दोनों सज्जन गांधीजीके सहयोगी थे और सन् १९५६-५७ में इस ग्रंथमालाके सम्पादकोंका भी हाथ बँटाते थे। गांधीजी इंडियन ओपिनियनमें लिखते थे इसका सर्वसामान्य प्रमाण हमें 'आत्मकथा' से मिलता ही है, तो भी कोई विशिष्ट अंश उनका है या नहीं इसके पक्ष या विपक्ष में प्रमाण मिलने पर उसे परखा गया है। इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें गांधीजी के जो गुजराती लेख थे उनके अनुवाद भी दे दिये गये है। ये विश्वस्त आधारों पर गांधीजीके माने गये हैं।

इस खण्डमें अनेक पत्र और प्रलेख मूल अथवा फोटो-नकलोंके रूपमें पाई जानेवाली हस्ता- क्षरहीन दफ्तरी नकलोंके आधारपर शामिल किये गये हैं। किसी-किसी प्रलेख पर बहुत-से हस्ताक्षर थे। उनमें से जो प्रमुख थे केवल उन्हें ही लिया है।

दिलचस्प उदाहरणोंके तौर पर खालिस वकालत के पेशेसे सम्बन्धित कुछ प्रलेख भी लिये गये हैं। इनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें गांधीजी ने उन दूसरे वकीलोंके मार्गदर्शनके लिए तैयार किया था जो भेदभाव पर आधारित कायदों या रिवाजोंसे सम्बन्धित मुकदमोंमें पैरवी कर रहे थे। सामग्रीको उद्धृत करनेमें दृढ़तासे मूलका अनुसरण करनेका प्रयत्न किया गया है। छापे की स्पष्ट भूलोंको सुधारा है और मूलमें व्यवहृत शब्दोंके संक्षिप्त रूपोंके स्थानपर पूरे रूप दिये गये हैं।

अखबारों या पत्र-पत्रिकाओंके लेखोंके अतिरिक्त लिखनेकी तारीख, जैसे चिट्ठियों में लिखी जाती है उस तरह, सदा दाहिने कोने पर ऊपर दी गई है। मूलमें यदि वह नीचे थी तो भी उसे ऊपर ही कर दिया है। जहाँ मूल पर कोई तिथि नहीं थी वहां चौकोर कोष्ठकोंमें संभाव्य तिथि रख दी गई है और कभी आवश्यकतानुसार इसका कारण समझाया गया है । अन्तमें दी गई तिथि प्रकाशन की है। व्यक्तिगत पत्रोंमें, पत्र जिन्हें लिखे गये हैं उनके नाम शीर्षकमें दिये गये है। सामग्रीके सूत्रका उल्लेख उसके अन्तमें किया गया है।

मूलकी भूमिकामें, पादटिप्पणियोंमें और मूलके बीच चौकोर कोष्ठकोंमें तथा छोटे अक्ष- रोंमें जो सामग्री है वह सम्पादकीय है । गोल कोष्ठक मूलानुसारी है। जहाँ गांधीजीने मूलमें दूसरों के या अपने ही लेखों, वक्तव्यों और विवरणोंके उद्धरण दिये हैं, वहाँ उन्हें हाशिया छोड़कर अलग अनुच्छेदमें गहरी स्याहीसे छापा है।

पाठ और शब्दोंको समझनेमें सहायक अधिकांश सूचनाएँ पादटिप्पणियोंमें दी गई हैं। पादटिप्पणियोंमें इसी खण्डमें अन्यत्र प्रकाशित सामग्रीका उल्लेख अंश, शीर्षक अथवा उसके मूल


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